Tuesday, November 6, 2012

४ नवम्बर,रविवार,र. के घर हम चार महिलाये मिले और साथ गुजारा एक प्यारा सा दिन बाकी तीनों हमसे उम्र के लिहाज से काफ़ी छोटी हैं.हमारे लिये लड़कियां ही हैं पर बहुत कुछ सिखाती हैं ये लड़कियां.सबके अपने अपने दर्द हैं,शारीरिक,भावनात्मक और जीने के लिये खासी जद्दोजहद भी है पर शिकायत नहीं है.न ये दर्द इतने बड़े हो कर सामने खड़े हो पाते हैं कि उनका काम करने का,चलते रहने का उत्साह मंद कर सके.
शायद उन्होंने बहुत पहले समझ लिया है कि अपनी तकलीफ़ें झेलने का सबसे नायाब उपाय है दूसरों की तकलीफ़ मे साझेदारी.ये तीनों ही किसी न किसी रूप में अपने समाज मे हाशिये में पड़े लोगों के लिये काफ़ी कुछ कर रहीं हैं और करते रहने की दिशा में सोचती भी रहती हैं.
मं.नारी से सम्बन्धित विभिन्न मुद्दों पर शोध और दस्तावेजीकरण का काम लम्बे अरसों से कर रही है.उसकी अपनी एक छोटी सी टीम है जो सर्वेक्षण आदि का काम भी करती है.अपनी संस्था के अंतर्गत इन्हीं विषयों से सम्बन्धित पुस्तकें भी प्रकाशित की है और एक पत्रिका नियमित रूप से प्रकाशित होती है.विगत कई वर्षों से शहर की कुछ मलिन बस्तियों मे बच्चों के लिये विद्यालय भी चला रही है.यहां बच्चों को शुरुआती दौर के शिक्षा दे उन्हें आगे के लिये अन्य विद्यालयों में दाखिला भी करवाती है.इसके अतिरिक्त अभी हाल ही में उसने अपने एक बहुत पुराने सपने को जमीन भी दी है--एक ऐसे घर की शुरुआत कर के ,जहां निराश्रित व्रिद्ध,एकल युवतियां और अनाथ बच्चे सब एक छत के नीचे रह सकें.
रा.  एक स्थापित संस्था की सचिव है ,जिसका बीज बोने के समय से ही वह संस्था के साथ है. वह देश के विभिन्न क्षेत्रों मे विभिन्न मुद्दों पर काम करती है पर मात्र कागजी कार्यवाही नहीं जमीनी रूप से भी वह इन मुद्दों पर काम करती है ,लोगों से जुड़ती रहती है.एक परिवार या  एक व्यक्ति के आधार पर भी उनकी सम्स्यायों का  निदान करने का प्रयत्न करती है.
अ. इस क्षेत्र में  विभिन्न  तरीकों से अपना योगदान देती है.कभी सीधे स्वंय काम कर के और कभी गांव आदि मे लोगों की एक क्षेत्रीय टीम को तैयार कर के,उन्हें प्रशिक्षित कर के इस लायक बना कर कि वे अपने क्षेत्र की समस्यायों को स्वंय हल कर सकें और उन्हे राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य मे भी समझ सकें.
आज की बैठक का मुख्य मुद्दा था अ. की नयी संस्था की शुरुआत करना और उसके कार्य प्रारूप पर थोड़ा विचार विमर्श करना तथा अपने आपको टटोलना कि हमारी अपने आपसे क्या अपेक्षायें है,हमारी क्या क्षमतायें है और हम क्या और कैसे कर सकते हैं
सबसे अच्छी बात यह है कि एक ही क्षेत्र में काम करने के बावजूद एक दूसरे का साथ देने की भावना है और चीजें मात्र वैचारिक धरातल पर ही नहीं तैरती वरन उन्हें व्यवस्थित रूप से कैसे कार्यान्वित किया जाय इसका भी पूरा प्रयत्न किया जाता है .सपने विचारों का और विचार कार्यों का रूप लेते हैं यानि सपने सच होते हैं
काम सम्बंधी बातों के बाद सबने मिल कर खाना बनाया और एक साथ बैठ कर खाया.काम करते करते बतियाना,हंसी -मजाक जैसे नानी की चूल्हे वाली रसोई के दिन जिन्दा हो उठे.
खाने के बाद र.ने बहुत ही उम्दा चाय बना कर पिलायी और फ़िर हम वापस आने के लिये उसकी बालकनी पर थे.सामने था पार्क जिसमे उसकी कोलोनी के लोगों के साझा प्रयत्नों से पनपी व्यव्स्था और सुरुचि साफ़ दिखायी दे रही थी.एक तरफ़ करीने से  बनी सब्जियों की क्यारियों मे नन्हें- नन्हें पौधे मुलुक -मुलुक कर झाक रहे थे,दूसरी ओर घास लगाने के लिये पार्क साफ़ किया जा रहा था और किनारे लगे लम्बे पेड़ों के बीच से सामने था डूबते सूरज का आरक्त चेहरा.विदा लेते सूरज की नरम हथेलियां हौले हौले सहला रहीं थी हर चीज को, आशीर्वाद देती सी.
चौड़ी -खुली सड़क पर बतियाते हुये हम आये टैम्पो तक. इंजीनियरिंग कालेज चौराहे पर टैम्पो से उतर कर हम अपने -अपने रास्ते की ओर बढ ही रहे थे कि मं. को दिख गया सड़क किनारे कढायी मे धीमी धीमी आंच में उबलता मलाई वाला दूध और जब मन ललक ही गया था तो इच्छा तो पूरी करनी ही थी.हम,अ. और मं जा खड़े हुये वहां और फ़िर दूध के संग कुल्हड़ का सोंधापन भिगो गया भीतर तक.
गाड़ियों का शोर,बेतरतीब ट्रैफ़िक,चारों ओर चिल्ल्पों लेकिन इन सबके बीच भी कुलहड़ की महक और अपनेपन का साथ जैसे अचानक कंक्रीट की इमारतों के बीच दिख गये हों पीपल के नर्म ,मुलायम ,गुलाबी हरे से दो पत्ते.