Wednesday, April 13, 2011
एक सुबह.....
हमें अच्छे लगते हैं अलस सुबह पौ फ़टने से पहले खुली हवा मे अपने साथ बिताये कुछ पल. खुली छत पर बस हम होते हैं, आहिस्ता आहिस्ता डोलती हवा और उपर छाया आसमान. आस पास की किसी छत पर कोई नही होता उस समय, ना ही कोई नज़र आता है नीचे सड़को पर. वे पल मेरे बेहद निजी होते हैं. हर सुबह होती है कुछ अलग. अब आज की ही बात लो. रात बारिश हुयी थी . तेज हवाये भी चली थी. सुबह नम थी और छत ठंडी. तलुवों से ठंडक धीरे धीरे उपर को चढ रही थी. हथेलियों मे बूंदे सहेजे हवा चेहरे को सहला रही थी और उपर छाये आकाश का रंग गाढा नीला था कुछ बैंगनी की ओर झुकता सा,और दिनों से बिल्कुल अलग. दो ऊंची छतो के बीच से झांकता पूरब के आकाश का वह कोना आज गुलाबी के बजाय हलके पीले रंग मे चमक रहा था. यूं तो महानगरो में आकाश को जीने का आनन्द बस मुट्ठी भर हो कर रह जाता है पर फ़िर भी नज़र भर आसमान देखने को मिलता है यही क्या कम हैं. खुशियों की तलाश में तमाम उम्र भी नाकाफ़ी हो सकती है और पल की खुशी भी उम्र के समूचे फ़लक पर छा सकती है.
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