Tuesday, October 2, 2007

फुलवा माली


माली का नाम -फुलवा .सुनते ही मजा आता है ना । हमें भी आया था जब हमने पहली बार सुना था .पर फुलवा माली की इस नाम से जुडी जो कहानी हम कहने जा रहे हैं ,उसका दर्द हमने उस समय कहीँ महसूस तो किया था पर पूरी तरह समझे तो अब हैं ।
सफ़ेद धोती ,बंडी नुमा कुरता और कंधे पर अंगोछा ,कुछ ग्ठा बदन ,छोटा क़द ,और एक निस्छ्ल हँसी -ये थे हमारी कॉलोनी के वेलफेयर सेंटर के माली । जब हम बच्चे थे तो इस सेंटर का जो रूप रंग ,जो गतीविधिया थी ,उसकी नए आये लोग कल्पना भी नहीं कर सकते .खैर उस पर बात फिर कभी .अभी तो अपने माली काका पर वापस चलते हैं .सेंटर में उस समय पूर्ण रूप विक्सित बागीचा हुआ करता था ,सामने कीओर .बागीचा यानी लोँन .इसी बागीचे में काम करते हमे माली काका दीखायी पड़ते थे .खुरपी से कभी घास साफ करते ,कभी पौधे सवार्ते ,वे हमें बागीचे का एक हिस्सा ही लगते थे जैसे .हमने उन्हें कभी बागीचे से अलग और बगीचे को उनके बिना देखा ही नही था .और एक दिन माली काका बागीचे में नही थे .यूं तो शायद मेरा ध्यान इस बात पर नही जाता पर उस दिन किसी कारण वश हम सामने की सीढ़ीयों में अकेले बैठे थे .शायद अम्मा की सिलायी क्लास छूटने का इंतज़ार कर रहे होंगे और कोई साथी सगाथी नही होगा .हाँ तो अचानक हमें लगा कि बगीचे में कुछ मिसिग है .फिर ध्यान गया की माली काका नहीं हैं .एक छोटा सा अचरज का भाव उगा -अरे हाँ सच माली काका बागीचे से अलग कोई चीज हैं .हमने पहली बार माली काका का नोटिस लिया .अब रोज आते जाते हम बागीचे में देखते । कभी कभी पौधों को पानी डालते कोई एक अपरचित व्यक्ति दिख जाता .और करीब द्स बारह दिन बाद अचानक एक दिन माली काका बागीचे में थे .हमे लगा आज बागीचा फिर से ज्यादा भरा पूरा लग रहा है .हम बागीचे में उनकी उपस्थिति के अनजाने ही कितने आदी हो गए थे .ऐसा जीवन में बहूत सारी चीजो के साथ होता है कि वे हमारे पास ,हमारे साथ थी यह हमें उनके ना होने पर ही पता चलता है ।
हाँ ,तो इतने दिन बाद उन्हें बागीचे में देख हम अन्दर से बहुत खुश हुए .यह भी शायद मानव स्वाभाव है कि वह अपने चारों तरफ जो है ,जैसा है ,जहाँ है वैसा ही चाहता है .कहीं भी कुछ हिल्ने से असुर्छा सी पनपने लगती है शायद .हम दौड़ते हुए माली काका के पास गए .ve सर jhukaye ghas में कुछ khod रहे थे .'kahan थे इतने दिन '.इतने पास से aayii aawaj सुन कर unahone सर उठाया .क्या था उनकी aankho में .halka सा अचरज ,कुछ ख़ुशी या दुःख .'हमसे poochh रही हो ,bitiya .'हाँ और क्या ,हम रोज देखते थे .तुम कितने दिन से नहीं आ रहे थे .हम कुछ utejjna ,कुछ utsah में बोले चले जा रहे थे .'सो kaahe bitiya ,hamaka कहे dhoodh रही थी .हम ekdam से chup रह गए .सच ,हम क्यों intzar कर रहे थे उनके लॉट आने का .यह हमारी उनसे पहली बात cheet थी .उनके बीच में चले jaane से पहले तो हमने उनसे कभी कोई बात तक नही kii थी .हम क्या और कैसे samjhate कि उनके ना रहने पर हम उन्हें क्यों miss कर रहे थे .हमे उनसे कोई काम तो था नही .हम माली काका को क्या bataate जब हमे खुद भी उसकी ठीक ठीक वजह समझ में नही आ रही थी .उस समय तो nahiihii aayii थी .lekin कुछ भी कहने की jarurat नही padii .शायद मेरे chehare ,मेरी aankho में aisaa कुछ था कि उन्हें सब बिना कहे ही समझ में आ गया .और aise shuru huii उनकी हमारी dostii ।
अब कभी कभी वे हमारे घर आने लगे थे .अक्सर जब वे आते तो हम apnii baundrii में charpaii पर बैठे कुछ पढ़ लिख रहे होते .ekdin unhone हमसे कहा 'bitiya हमे hamaraa नाम लिखना sikhaa dogii .हमने पूछा 'काका,tumne kakahaaraa यानी क ,kh ,likhnaa आता है क्या? unhone कहा ना bitiya .मैंने कहा फिर तो नाम likhnaa siikhne में बहूत समय lagega क्यों कि पहले तो k, kh g ,seekhna padegaa .काका ने कहा ना हमें पूरा लिखना नही siikhna हैं .तुम तो बस हमें hamaraa नाम लिखना sikhaa दो .तुम लिख दो ,हम देख कर nakal कर lege और फिर बार बार लिख कर सीख jayege .हमे उनकी बात पूरी तरह समझ में नही aayii .padhna ,लिखना seekhne का मन karnaa तो समझ में आता है ,पर यह केवल अपना नाम लिखना seekhnaa .हमने पूछा achchaa apnaa नाम bataao .माली काका कुछ देर के लिए बिल्कुल chup से हो गए .जैसे नाम कहीं खो गया हो और उसे dud कर laane में उन्हें समय लग रहा हो .या फिर apnaa ही नाम याद karanaa पद रहा हो .और सच कुछ aisaa ही था .कहीं बहूत दूर चले गए माली काका vartmaan में वापस आये .'हमारी maai ने बहुत प्यार से हमारा नाम phoolchanda रखा रहे.बहूत प्यार करती थी हमारी maaii फूलों से .हम लोग jaat से माली हैं bitiya .आस पास के gaon माँ kauno saanii naa रहे हमारी maaii का फूलों की maala goonthne में .काका नाम लिखना seekhna भूल जैसे apnii maai के achra की chhaon में ही चले गए थे .में slet battii ले उन्हें seekhane की पूरी taiyarii में थे .पर उनके chehare के भाव देख उन्हें बीच में tokane का मन भी नही कर रहा था .phir भी मैंने कहा phoolchand कि phoolchandra .ना bitiya phoolchand .तुम तो hamar naamay bigad dogii .हमने अपने गयान पर prashnchinh लगते देख jara tunak कर कहा तुम्हे कुछ मालूम तो है नही .सही to phoolchandra ही होता है.काका बिना जरासा भी pertubed हुए बोले अब tumhar सही गलत तो hamkaa नही मालूम पर hamaar maaii तो hamaar नाम phoolchand ही रखे रहे .हमने कहा achha baba तो phoolchand ही likhnaa sikhaa देते हैं काका बोले naahi.'फिर' ?maaii hamakaa प्यार से phulwaa bulawat रही .stithii कि gambhiirta कुछ कुछ samajhane के baavjood मेरा bachpanaa जोर मार रहा tha .फुलवा ,यह कैसा ladkiyon जैसा नाम है .kaakaa thore hurt हो गए .'i hamaar maai का प्यार रहे .इस बार मैंने पूरी sanjiidagii से कहा ,'achchaa काका फुलवा likhnaa sikha दे .kaakaa ने humak कर कहा ,'हाँ bitiya।' और फिर abhyas shuru हुआ .जब मैंने पहली बार उन्हें उनका नाम लिख कर दिखाया तो उनके chehare की ख़ुशी देखते banatii थी .slet हाथ में ले un लिखे हुए aksharon पर यूं हाथ phira रहे थे जैसे apnaa bhoola bisraa astitatva हाथ आ गया हो .बागीचे में ghul मिल वे बस माली ,माली kaaka हो कर रह गए थे .उनकी maaii का phulwaa तो सच कहीं bilaa ही गया था .shayaad अपने आप ko mahsoosne कि chaah में वे apnaa नाम likhnaa siikhnaa chaah रहे थे ।
काका ने बताया कि gaon में logon ने कब फुलवा का phullu और phullu का pullu बनाया पता ही नही चला .maaii chalii गयी और उसके साथ ही चला गया फुलवा नाम .फुलवा लिखना siikh कर unhone ना केवल अपनी पहचान gum होने से bachaa lii थी balki apnii maaii को mahsoosne का ,उसे अपने पास रखने का tareeka भी dood लिया था .और फिर भी कहा जाता है कि नाम में क्या रखा है .

4 comments:

who cares... said...

so touching....after going thru it i too remembered all those "fulwas" i met during the long-long journey of my life...my remembrances and regards to all those fulwas....including your's.....and thank you for helping out fulwa....

Anonymous said...

Very nice !! Read all the posts and almost all of them got me into the nostalgia of pristine childhood, burried under the razzmatazz of today's internet and iphone world.

The fine details liven up the past and take us deep into the glory of the times we have left years behind.

I would love to hear something about our Babupurwa mail man "Panditji", Magicman of Shar, The Shahad wale (honey) bhaiya and most of all a blog on our great Babu (Dear Granpa)!!! Looking forward to seeing some post on them whom we can never forget.

Udan Tashtari said...

बहुत भावात्मक रचना है. सुन्दरता से लिखी गयी. बीच बीच में रोमन में लिखा है, उससे रुकाव आया अन्यथा प्रवाहमयी कहानी है. बधाई.

Anonymous said...

Very beautifully expressed the sentiments and emotions of those moments. Will look forward to visiting your page - keep writing !