इस बार ,यानि सितम्बर २०११ में बनारस जाने पर बहुत सारा समय अकेले घूमने में बिताया.अकेले घूमना और अकेले बैठना हमें बहुत पसन्द है अगर हम प्रक्रिति के बीच में हैं.चूंकि यह समय बनारस हिन्दू युनीवर्सिटी के कैमपस में बिताना था ,इसलिये हम इसके प्रति उत्साही थे.और संयोग देखिये कि जिस विभाग में सुन्दर को काम था वह कैम्पस के विश्वनाथ मन्दिर के बहुत समीप था तो इधर सुंदर विभाग में होते और उधर हम मन्दिर में.
एक किताब हाथ में ले हम भगवान जी को हाथ जोड़ने के बाद मन्दिर के ऊपरी तल के पीछे वाले हिस्से में जाते और बस समय कैसे बीतता पता ही नही चलता.मन्दिर के पीछे क्या था ,यह तो पता नहीं पर वहां ऊंचे ऊंचे खूब हरे पेड़ थे.मन्दिर के पत्थर का लाल रंग और पड़ों का हरा मिल कर नीले आकाश तले ऐसी अर्ध चन्द्राकार रंगोली सजाते लगते की मन एक मीठी चुप में गुनगुनाने लगता.हम जगह बदल बदल कर बैठते कभी बरांडे में और कभी बाहर खुले में.खुले में बैठने पर हवा का अधिक आनंद मिलता और मन्दिर का साइड का हिस्सा अपनी पूरी ऊंचाई में दिखाई पड़ता.आकाश की ओर सीधी एकटक द्रिष्टी से ताकते मन्दिर के शिखर को देख हमे हमेशा लगता जैसे कोई तपस्वी एक टांग पर खड़ा हो अपने दोनों हाथ ऊपर को उठाये ,नमस्कार की मुद्रा में जोड़े.शिखर के एकदम ऊपरी टिप पर नजर गड़ा कर देखते रहने पर ऐसा लगता जैसे ऊपर पसरे नीले आसमान से कोई अपनी ओर खींच रहा है.जैसे केवल शरीर वहां बेंच पर रह गया हो और मन हवा के संग उड़ चला हो उस अजाने देश की ओर, उड़ता हुआ ऊपर और ऊपर.
कभी कभी हम सामने की ओर बैठ भजन सुनते थे.शांत एवं खुले खुले बरांडों में घुमड़ती गायक की आवाज के संग हार्मोनियम की धुन मन को बहुत शांति पंहुचाती.
नीचे वाले तल में भगवान शिव ,लिंग रूप में स्थापित हैं और उपारी तल में मूर्ति रूप में.इसके अतिरिक्त ऊपरी तल पर मां दुर्गा और भगवान राम के भी स्थान हैं.मन्दिर की दीवारों पर संगमरमर के पट्टॊं पर विभिन्न पौराणिक संदर्भ अंकित हैं,सम्पूर्ण गीता भी मन्दिर की दीवारों पर लिखी हुई है .
अपने साथ बिताये हुये ये पल हमें बहुत कुछ दे गये हैं जिन्हें शब्दों में बांध पाना हमारे लिये बेइन्तहा मुश्किल है.
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एक किताब हाथ में ले हम भगवान जी को हाथ जोड़ने के बाद मन्दिर के ऊपरी तल के पीछे वाले हिस्से में जाते और बस समय कैसे बीतता पता ही नही चलता.मन्दिर के पीछे क्या था ,यह तो पता नहीं पर वहां ऊंचे ऊंचे खूब हरे पेड़ थे.मन्दिर के पत्थर का लाल रंग और पड़ों का हरा मिल कर नीले आकाश तले ऐसी अर्ध चन्द्राकार रंगोली सजाते लगते की मन एक मीठी चुप में गुनगुनाने लगता.हम जगह बदल बदल कर बैठते कभी बरांडे में और कभी बाहर खुले में.खुले में बैठने पर हवा का अधिक आनंद मिलता और मन्दिर का साइड का हिस्सा अपनी पूरी ऊंचाई में दिखाई पड़ता.आकाश की ओर सीधी एकटक द्रिष्टी से ताकते मन्दिर के शिखर को देख हमे हमेशा लगता जैसे कोई तपस्वी एक टांग पर खड़ा हो अपने दोनों हाथ ऊपर को उठाये ,नमस्कार की मुद्रा में जोड़े.शिखर के एकदम ऊपरी टिप पर नजर गड़ा कर देखते रहने पर ऐसा लगता जैसे ऊपर पसरे नीले आसमान से कोई अपनी ओर खींच रहा है.जैसे केवल शरीर वहां बेंच पर रह गया हो और मन हवा के संग उड़ चला हो उस अजाने देश की ओर, उड़ता हुआ ऊपर और ऊपर.
कभी कभी हम सामने की ओर बैठ भजन सुनते थे.शांत एवं खुले खुले बरांडों में घुमड़ती गायक की आवाज के संग हार्मोनियम की धुन मन को बहुत शांति पंहुचाती.
नीचे वाले तल में भगवान शिव ,लिंग रूप में स्थापित हैं और उपारी तल में मूर्ति रूप में.इसके अतिरिक्त ऊपरी तल पर मां दुर्गा और भगवान राम के भी स्थान हैं.मन्दिर की दीवारों पर संगमरमर के पट्टॊं पर विभिन्न पौराणिक संदर्भ अंकित हैं,सम्पूर्ण गीता भी मन्दिर की दीवारों पर लिखी हुई है .
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