Thursday, October 11, 2007

त्वीटी की जिन्दगी ...


श्वेता के घर में कार पार्किंग के शेड को थामे लोहे के पतले से खंभे पर एक बुलबुल अपना घोसला बना रही थी .जब उसने तिनके ला कर रखने शुरू किये तभी हम लोग सोचते थे कि घर के बाहर इतनी सारी और भी जगहें हैं ,जहाँ छाया भी है और तेज हवा से भी बचाव है फिर वह ऎसी जगह क्यों घोसला बना रही है जहाँ उसका सधना भी मुश्किल लग रहा है .पर सच पूछो तो हम इस मुद्दे पर राय भी व्यक्त करने वाले होते कौन है .वह मकान नही घर बना रही थी .हम लोग तो मकान बनवाते हैं और फिर उसे घर बनाने में ताउम्र मशक्कत करते रहते हैं .कभी इधर से सीवन उघरती है कभी उधर से .प्रयास ही जारी रह जाय तो हम मान लेते हैं कि घर बनाने में सफ़ल हो गए .पर ये चिड़यायें तो अपने घर को बनाती भी खुद हैं और बसाती तो हैं हीं ।
हाँ तो हम बात बुलबुल की कर रहे थे । हमारे देखते देखते उसका घर बन कर तैयार हो गया .बिल्कुल गोल कटोरी जैसा छोटा सा घोसला ,उस आरे गोल खंभे पर रखा भर था जैसे .हम सच में हैरान थे कि यह टिका कैसे है .खंभे के नीचे से जाती कोई तिनके या रस्सीनुमा चीज हमे नज़र ही नही आती थी पर साहब घोसला तो अपनी जगह बिल्कुल फिक्ष् था जैसे फेविकोल से चिपका हो .जब हमारी सारी चिंतायों को बेबुनियाद साबित करते हुये घोसला जस का तस् रहा तो हम उसके आकार को ले कर उधेड़बुन में पद गए .इतना छोटा घोसला ? क्या बुलबुल के मिजाज और चिड़ियों से अलग होते हैं ?इस घोसले में तो बमुश्किल एक ही बच्चा आ पायेगा शायद .गरज यह कि बुलबुल तो दीं दुनिया से बेखबर अपना काम किये जा रही थी और हम बेगानी शादी में अब्दुल्ला हुए जा रहे थे ।
खैर कुछ दिन बाद घोसला आबाद हो गया आवाजे आनी तो शुरू नही हुई मगर ममी -पापा की घर आव जाही बढ़ गयी थी .हम भी जब फुरसत में होते तो बडे प्यार से उनकी गतिविधियां देखा करते .हमे उनकी भाषा तो समझ में नही आती मगर चोंच में कुछ दबाये उनकी भागा दौदी देख बड़ा लाड आता .हमे लगता आदमी हो या जानवर या फि नन्ही सी चिड़िया ममता का श्रोत सबके सीने में एक सा ही होता है और फिर अचानक सब उलट पुलट गया ।
उस दिन ऑफिस से लौटते ही श्वेता का फोन आया ,'न्म्मो ,बुलबुल का एक बच्चा नीचे गिर गया है .'उसकी आवाज में चीख की गूँज थी और हम आम बुजुर्गों की तरह बुलबुल के फूहडपन पर बरस रहे थे .पहले ही लग रहा था कि इतने छोटे से घोसले बच्चे कैसे समां पाएगे .इतने ऊपर से गिरा है .एक या दो दिन का होगा .कितनी चोट लगी होगी .बच थोड़े ही पायेगा बिचारा .बुलबुल दम्पति का कहीँ पता नही था .घोसले में बिल्कुल सन्नाटा था । हम लोगों ने यह तो सुन रखा था कि चिड़िया के बच्चे को यदि आदमी का हाँथ लग जाय तो वे उसे फिर स्वीकार नही करती हैं .एक स्टूल बाहर निकाला गया .मनु ,सुंदर को बुला कर लाया और फिर बेहत एहतियात के साथ सुन्दर ने उसे कागज़ में चध्या (बिना हाथ लगाए)और वापस घोसले में रख दिया .हम निश्चिंत थे कि हमने बच्चे को सही जगह पहुचा दिया है .बुलबुल दम्पती जब वापस आएगा तो बच्चे को पा कर खुश होयेगा .यदि अभी तक उसकी अनुपस्थिति पता ही नही चली होगी तो भी अपने तरीक़े से बच्चे कुछ तो बताएँगे .यही सब सोच कर हम लोग अपने अपने कामो में लग गए ।
पर अगली सुबह बच्चा फिर जमीन पर था .हम हतप्रभ थे .दुबारा तो इतनी जल्दी फिर वैसी ही दुर्घटना तो नही हो सकती .फिर क्या बुलबुल ने बच्चे को अपनाने से इनकार कर दिया .मगर क्यों ?यह तो नन्हा सा बच्चा है जवान हुई लड़की तो नही कि अनजानो के हाथ लग गए तो दरवाजे हमेशा के लिए बंद .जीतेजी ही मरा समझ लिया .फिर हमने तो सच हाथ ना लगे इसके लिए कितने जतन किये थे .सुन्दर ने कहा कि हमने कहीं सूना या पड़ा है कि चिदियाँ अपने उन्ही बच्चों को दाना देती हैं जिनके बचने की उन्हें उमीद होती है .जो सबसे कमजोर बच्चा होता है वह वैसे भी सबसे पीछे रह जाता है और माँ के मुँह से दाना नही ले पाटा .ठीक है बच्चे तो सब एक जैसे नहीं होते पर माँ का कलेजा तो अपने सबसे कमजोर बच्चे के लिए सबसे ज्यादा उमड़ता है .ऐसे कैसे बिना दाना पानी के मरने के लिए छोड़ सकती है .हमे मालूम नही कि बुलबुल ने ऐसा क्यों किया .पर हम सब बहुत दुखी थे .और वह बच्चा दो दो बार उतनी उचायी से गिराने के बाद भी साँसे ले रहा था ।
अब हमने वही किया जो कर सकते थे .छोटी सी एक दलिया में पत्ते ,घास रख कर उसका घर बनाया गया .द्रोप्पेर से उसके मुहं में दूध की बूंदे तप्कानी शुरू की गयीं .बच्चे की आँखें नही खुली थी पर चोंच अछे से खोल ले रहा था .एक दो बार दूध की बूंदे अन्दर गयीं तो मुहं के पास द्रोप्पेर के स्पर्श से ही मुहं उठा कर चोच खोल देता था .श्वेता का छ वर्षीय बेटा मनु सारे क्रिया कलापों में पूरे जुडाव से भाग ले रहा था । रात को भी उठ उठ कर देखा गया कि उसकी साँसे चल रही हैं या नहीं /
जब एक दिन और एक रात पार हो गयी तो हम लोगों के मन में आशा उपजने लगी .लगा शायद यह बच जाएगा । मनु और हमने उसका नामकरण भी कर दिया -त्वीटी .हम लोगों ने यह भी सोचा कि हरसिंगार के पेड पर इसे बडे होने पर रखा जाएगा .इन्तजार होने लगा कि उसकी आंखें कब खुलेगी ।
दूसरा दिन शुरू हुआ उस दिन हम उसे दलीय सहित धुप में ले गए .हमने सोचा इसे तो बाहर की हवा की आदत है .सच मानिए बाहर जाते ही जैसे उसके शरीर में नयी जान आ गयी .उसने चेहरा ऊपर उठा कर चारों ओर घुमाना शुरू किया .क्या महसूस कर रहा होगा ?अपने असली घर की निकटता का अंदाजा लग गया होगा क्या उसे .पता नहीं कहाँ से बुलबुल दम्पती को पता चल गया और वे भी आ कर शोर मचाने लगा .उनकी आवाज सुन कर बच्चे ने जितनी उसके शरीर में जान थी उतनी हरकत की .पता नहीं क्या कहना सुनना चल रहा था .पर ऐसा लग रहा था कि मेरे हाथ की दलिया में बच्चे को देख कर उसके माता पिता कुछ खास खुश नहीं थे .थोड़ी देर बाद बुलबुल तो उड़ गए और बच्चा दलीय में रखी दाल पर सर रख कर जैसे सो गया .हमे लगा उसने दूध तो पी ही लिया है अब बाहर की हवा खा कर ,अपने ममी पापा की आवाज सुन कर निश्चिंत हो सो रहा है .पर उसी रात हमारे त्वीटी ने आंखें सदा के लिए बंद कर ली .बंद क्या कर ली उसने तो आंख खोली ही नही ।
हम लोगों ने सबेरे बगीचे में उसकी समाधी बना दी .फूल भी चढ़ाये गए .हम और मनु सीढियों पर चुपचाप बैठे थे .अचानक मनु ने कहा ,'नानी ,नाना कह रहे थे कि जब चिदियाँ अपने बच्चे को दाना नही खिला पाती है तो मरने के लिए छोड़ देती है .''हाँ शायद ' क्यों क्या उसके बच्चे कोई खरीदता नही है क्या ?हम सन्नाटे में थे .अखबारों की कई पुरानी हेअद्लिनेस और उन पर हुई हम लोगों की चर्चाएँ मेरे जेहन में घूम रही थी .

3 comments:

Anonymous said...

Tweety has been immortalized by this piece. So very touching !

Naresh Soni said...

So touching...
Wen i started reading.. i was chatting side by side... but this was so good i cudn't reply even once... new msgs kept on popping in but i cudn't afford to leave this in between..
really nice one... Aksar jab man hilorein marta hai... ya fir bachpan mein yun hi kabhi... lagta thaa... kitna achcha hota agar ham panchi hote...lekin main galat thha shayad...

ePandit said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। आपके ईमेल सिग्नेचर से आपके चिट्ठे पर पहुँचा। उम्मीद है हिन्दी में लेखन जारी रहेगा। कोई भी दिक्कत हो निसञ्कोच सम्पर्क करें।