Sunday, January 13, 2008

ये औरते.....


आप ऊपर जो चित्र देख रहे हैं ,यह मेरा बनाया हुआ है . जी हां,आज कल हमे’ पेंट -ब्रश मे हाथ आज्माने का चस्का लग गया हैं. हां हां ,हमे पता है कि आज कल के समय मे पेंट-ब्रश की शुरुआत यानि समय से खासा पीछे चल रहे हैं हम . पर हमारे पास इसका अप्ना कारण है .पेंट-ब्रश मे काम करते हुए हमे ऐसा लगता है कि हम कागज पेन्सिल से काम कर रहे हों और हमे वही फ़ील पसंद है . वैसे भी मैकेनाइज्ड चीजो के प्रति मेरा आग्रह थोड़ा कम है वैसे आज्कल उनके बिना काम नही चलता इस्लिये देर सबेर उन्हे अप्नाते ही हैं पर फ़िर भी सब्से कम जटिल चीज से शुरुआत करते हैं .खैर छोड़िये इस विषय को यही खत्म करते हैं. आप तो यह बताइये कि मेरा प्रयास कैसा लगा .
अब जब आप चित्र देखने आही गयी हैं तो इसे देख कर जो पंक्तिया मेरे जेहान मे उभरी उन्हे भी मुल्हायेजा फर्माना ही पड़ेगा . तो पेश है-


सूरज के संग उठ जाती
ये औरतें ...

काम मे फ़िर जुट् जाती
ये औरतें...
लकड़ी लायें ,धान कूटे ,चूल्हा गर्माती
ये औरते...
दिन भर उठा धरी मे रमी
ये औरतें...
जीवन देती, उसे पोसती
ये औरतें ...
क्यों सूरज सी लगती
सूरज के संग उठ जाती
ये औरतें . ..

1 comment:

Anonymous said...

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