Sunday, August 14, 2011

रात रानी की महक

हमारे छज्जे पर की रात रानी आजकल खूब फूल रही है. सांझ गहराते ही, उसकी महक हवा में घुलने लगती है. हवा का हल्का सा झोंका चला नहीं कि इसकी तन्वंगी काया लरज लरज उठती है और साथ ही खिल उठते हैं खुशबू के अनगिनत फूल. पास से गुजरने भर की देर है कि महमहाती खुशबू दामन थाम लेती है और हम अवश से इसके करीब बैठ जाते हैं, फिर होता है सपनीला अंधियारा, हल्के नशे में डुबोती गंध, एक मीठी चुप और अनाम सुख में आकंठ डूबे हम. कितनी सुखद अनुभूति है, सच शब्दातीत.कतरा कतरा महक रोम रोम में घुलती जाती है और हम आँख बंद किये किसी और ही दुनिया में होते है. अपना आप ज्यों बादल का टुकड़ा और धरती से दूर नक्षत्रो  तलक खिंच जाती है खुशबू की आकाश गंगा .हौले हौले डोलते हम अशरीरी हो उठते  है.हे ईश्वर  कितने सारे  तो खूबसूरत संबल दिए है तुमने हमें, फिर भी यह आदमी का मन न कातर होना छोड़ पाता है न शिकायत करना .
एक झाड़ और है रात रानी का जिसकी महक बरसों बाद आज भी मेरे भीतर तरो ताजा  है--पिथोरागढ़ की उस झंझावाती रात गेस्ट हाउस के बाहर घुप अँधेरे में अदृश्य रात रानी की  सर्वव्यापी महक. उस रात जब हमारी जीप पहाड़ के सकरे सर्पीले रास्तो पर पिथोरागढ़ की और बढ़ रही थी तो बादल यूं टूट कर बरस रहे  थे जैसे या तो वे खुद समाप्त हो जायेंगे या बाकी सब कुछ ख़त्म कर के दम लेगे. अन्धेरा इतना गहरा की जीप की हेडलाईट के परे बालिश्त भर आगे भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. मन में एक डर खदबदा रहा था कि बगल में सट कर चलती ऊंची ऊंची चट्टानों की कतारों में से किसी एक का मन अगर ऊपर से कूद जाने का हुआ तो...बस हम लोग उस डर को वहीं दाब देने की कोशिश करते. चट्टान तो नहीं पर रास्ते भर बादल के टुकड़े जीप के सामने रास्ता रोक रोक खड़े हो जाते थे.और हवा ...उफ़ जैसे छाती पर हाथ मार मार, बाल खोले, सिर पटक पटक विलाप कर रही हो. हम जैसे तैसे सही सलामत ठिकाने पर पंहुच गये और जब फ़्रेश हो, हाथ मे काफ़ी का प्याला ले गेस्ट हाउस के बराम्दे में आये तो बारिश थम चुकी थी और हवा में गुच्छा गुच्छा महकती रात रानी की गन्ध जैसे पूजा की थाली मे रखे प्रसाद सी मिली थी हमें...







8 comments:

Sufi said...

Dear di,
bahut achha vivran hai....par raaste main Barish ka aur hawa ka varnan bhayank laga...par antata...coffee ke saath mili raat ki raani ki mahak ne sab maza dvigunit kar diya...Behadd khoobsurat..

अनुजा said...

भाभी, कहां पर लगा रखी है रातरानी की बेल? घर के सामने जो अमलतास लगा था वो अभी है या नहीं?

फोटो सुन्‍दर हैं एक आध शेयर कर लूं?

Nupur Roopa said...

Raat Raani ki mahek ko shabdon aapne aise piroya hai ki hum pahuch gayain hain hamare bachpan ke ghar mein. Jab nan
hi hathelioyon se raat raani ke gucche tod kar van dei baaya tha apni ek dost ko.....achha laga un poorani galiyon se guzarana...

Pithoraghad ki raat samne khadi ho gayi kuch is tarah se likha ki hume badal bijli sab dikhayi sunayi de gaya...:):)

namita said...

प्रिय प्रिया
धन्यवाद.यादों को ,बातों को अपना जैसा ही मह्सूस करने वालो के साथ बांटने का सुख अवर्चनीय होता है.
वह रात मेरी बहुत प्यारी रातो मे से एक है.सात -आठ वर्ष तो हो ही गये होगे पर काफ़ी के प्याले से भाप अभी भी उठती रहती है.
आत्मीय उष्मा के भी कितने रूप होते हैं

दी

namita said...

अनुजा
घर के सामने वाला अमल्तास अब भी है और इस साल तो अभी तक फ़ूल रहा है.तुम्हे याद है,जान कर मन सच अमलतास हो गया.

यह रात रानी टेरस पर जहां ऊपर आने को तीन सफ़ेद वाली सीढीयां हैं ,उसी कोने मे लगी है.छत पर जाने वाले जीने की ग्रिल से सट कर लहरा रही है.
अब तो घर का चक्कर मार जाओ ,देखो हमने कितने खूबसूरत कारण तैयार कर रखे हैं

अरे ,बिल्कुल शेयर करो..........खुशियां तो बांटने से ही बढती हैं....हमारी रात रानी की उम्र दराज हो .
स्नेह
भाभी

namita said...

नुपुर....यादों से यादो के तार यूं ही जुड़ते रहे और इस सिरे से उस सिरे तक बस भीनी,मनमोहक खुशियां फ़ूलती .फ़ैलती रहे...यही सुख है हमारे इस रिश्ते का.
तुम्हारा मेरी पोस्ट पर आना हमारे मन को हमेश ही खुशी से भर जाता है.
तुम्हारे शब्दो की कोमलता और मिठास हमारे लिखे को एक नया आयाम दे जाती है.

नन्ही वन देवी हमारी कल्पना में मुस्कुरा उठी.हमारे खेल कितने अलग हुआ करते थे.

पिथोरागढ की रोमान्चक रात और वो रात रानी ताउम्र साथ रहेगी.हमे अच्छा लगा जान कर कि हम तुम्हे भी साथ ले चल पाये वहां तक.

स्नेह
नमिता

PUSHPA said...

Tumne sahi likha...vastav men Ishwar ne bhut sari chijen Insan ko khush karne ke liye prithvi par uplabdh kara rakhi hai...bas dekhne wale ki nazar chahiye.....Tumhari Ratrani jine men kahan chhupi hai ? Is sajiv varnan ke bad ek bar fir aakar dekhna padega...pithauragarh ka chitran to kamal ka hai..lagta hai ham to usi mahol men pahunch gaye....vo badalon ke tukdon ka rasta rokna.vo bijli ki darawni kadkadahat aur wo tej harharati hawa ki awaz ke sath... unche unche pahadon dar jana...wah bhai kya likha hai maza aa gaya......

namita said...

पुष्पा..शेयर करने का यही तो आनन्द है.हम बिन जाये कितनी ही जगहो की सैर कर आते है और आमने सामने न होते हुये भी कितनी ही अनुभुतियों को जी लेते हैं.रात रानी तो सामने ही टेरेस के एक कोने मे लगी है पर तुम जब आयी थी तो इस कदर फ़ूल नहीं रही थी इसिलिये ध्यान नहीं गया होगा.

आ जाओ ,साथ बैठ कर डूबे ,उतरायेगे रात रानी की गन्ध में

नमिता