Tuesday, December 30, 2014

कमरा भर आकाश



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2 comments:

umashankar said...

उफ्फ ! कहाँ से शुरू करूँ? मौली का स्वप्नलोक तो जैसे उसके जीवन का पिंजड़ा ही बन गया। बरसों बरसों के बाद जब मौली ने उस लोक से नीचे उतरना चाहा तो वो सीढ़ी ही गायब थी। सीढ़ी के गायब होने के पीछे दादी की क्या भूमिका थी? खैर, छोड़िये।

देखिये न, कहानी में मैं इतना मशगूल हो गया की कहानी की संरचना और कला की प्रशंसा ही करना भूल गया! हिंदी और अंग्रेजी शब्दों और साहित्य का उत्कृष्ट प्रयोग करते हुए एक नाटकीय मोड़ पर समाप्त की गयी यह कहानी बहुत दिनों तक याद रहेगी। कहानी का शीर्षक सुन्दर और सटीक है। लिखते रहिये। जीवन भर का दर्द इस कुशलता से चंद शब्दों में समेटने वाली कलमें सबके पास नहीं हैं।

namita said...

भला होता है कभी ऐसा कि मा्त्र सपनों में ही जीवन कट जाय. मौली को कभी तो पंख समेट आंगन में उतरना ही था....सीढ़ी के गायब होने के पीछे दादी की भूमिका नहीं थी पर ये दादीयों सरीखी शख्शियतें ही होती हैं जो परोक्ष रूप से याद दिलाती रहती हैं कि सीढ़ी और आंगन भी उतना ही जरूरी है जितना आकाश.
कहते हैं जीवन पेड़ जैसा होना चाहिए.....जमीन से जुड़ा और आकाश से मुखातिब.
जानते हैं उमाशंकर जी, आपके उत्साहवर्धक शब्द पढ़ कर हमारे भीतर सोयी कहानियां कुलबुलाने लगी हैं.बहुत आभार.लगता है कमर कस अपने भीतर पैठने की तैयारी करनी पड़ेगी.