ये बूंदी के डाभाई कुंड के चित्र हैं। कितना सुंदर और
कलात्मक है ना डाभाई कुंड ? आप सब बूंदी निवासी, कुंड के आसपास रहने वाले और
वे पर्यटक भी जो निकट भविष्य में डाभाई कुंड गए हैं थोड़े आश्चर्य में तो जरूर
होंगे कि कितना स्वप्निल आभास दे रहा हैं ये कुंड। हां ये सच है कि इन चित्रों में
उभरती तस्वीर से बहुत ही अलग और दुखद अनुभव है डाभाई कुंड से सीधा साक्षात्कार
करने का। नहीं नहीं, कुंड की कलात्मकता, उसके स्थापत्य और उसके सौंदर्य में कहीं
कोई कमी नहीं है। वो सब बिलकुल वैसा ही है जैसा कि चित्रों में दिख रहा है। लेकिन
हां, बहुत दुखी है ये कुंड अपनी उपेक्षा और अपने प्रति किए गए दुर्व्यवहार से।
जनवरी 2017 में अपनी बूंदी यात्रा के दौरान हमने बूंदी के
अनेक कुंड देखे। हमने पढ़ रखा था कि पर्यटन की दृष्टि से रानी जी की बावली
सर्वोत्तम कुंड है बूंदी का। किंतु हमारी यात्रा के समय इस बावली में संरक्षण
कार्य चल रहा था और प्रवेश वर्जित था इसलिए हम उसके सौंदर्य का आनंद उठाने से
वंचित रह गए। सच पूछिए तो डाभाई कुंड भी अत्यंत कलात्मक और खूबसूरत है, फिर इसकी
ऐसी दुर्दशा क्यों ? आप देख रहे हैं चित्रों
में हम कुंड की सीढ़ियों में कुछ दूर उतरे, वहां कुछ देर बैठे भी, आश्चर्य हो रहा
है ना कि जैसी कुंड की अवस्था है इस समय, कोई भी पर्यटक कैसे वहां जा कर बैठ सकता
है। लेकिन शायद उस कुंड ने हमसे केवल अपनी व्यथा ही नहीं कही बल्कि एक सपना भी
दिखाया। साफ सुथरी सीढ़ियों वाला चमकता कुंड, सीढ़ियों पर लाल, नीली, हरी, पीली
बंधेज, लहरिया साड़ियों में लिपटी सतरंगी चुनरियां लहराती राजस्थानी महिलाएं कुंड
के चौड़े चबूतरे पर लोक गीत और लोक नृत्य के कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही हैं, बहुत
सारे पर्यटक इधर उधर बैठे राजस्थान की संपन्न सांस्कृतिक विरासत का आनंद उठा रहे
हैं या फिर किसी क्षेत्रीय पर्व या आयोजन के अवसर पर कुंड की कलात्मकता का उपयोग
हो रहा है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कुंड के रखरखाव के लिए जिस राशि की आवश्यकता
हो उसके लिए प्रवेश पर कोई शुल्क लगा दिया जाए या फिर पर्यटन विभाग या स्थानीय
प्रशासन पत्थरों से लिखी इन खूबसूरत इबारतों को एक निर्धारित शुल्क लेकर
प्री-वेडिंग या ग्लैमर शूट जैसे अवसरों के लिए इस्तेमाल करे।
जब जाड़े की उस सुबह उगते सूरज की हल्की मीठी धूप में हम उन
सीढ़ियों पर बैठे थे तो सच मानिए मन खुशी और विषाद के मिश्रित भावों से भरा था।
लेकिन जब कुंड के परिसर में बने शंकर भगवान के मंदिर में हाथ जोड़े खड़े थे तो पता
नहीं क्यों मन में यह भाव आए कि अपनी यह बात आप सब तक पहुंचाएं। देखिए हमने तो
अपना सपना साझा कर दिया आपके साथ, इस उम्मीद के साथ कि इसे पूरा करने के दिशा में
आप सब जरूर कुछ न कुछ करेंगे और हमें एक बार फिर डाभाई कुंड आने का न्योता देंगे।
चित्र --- सुंदर अय्यर.
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