Sunday, August 13, 2017

"सन्नाटा बुनता है कौन" चंद्रलेखा का काव्य संग्रह

13.08.17
पिछले तीन चार दिनों से तबियत ठीक नहीं चल रही है, कमरे की खिड़की से झांकता आसमान भरा तो है बादलों से पर काले नहीं.  कुछ मटमैले से बादल, पर एक अजीब सी पारदर्शी रौशनी उनसे छन धरती तक आ रही है. बाहर हवा में डोलता अमलतास, आहिस्ता आहिस्ता कुछ रेशमी धुने रच रहा है. और हम कमरे के भीतर, बिस्तर पर पड़े चंद्रलेखा के कविता संग्रह  'सन्नाटा बुनता है कौन' की यात्रा कर रहे थे.
किसी भी विधा, किसी भी शिल्प से अधिक हमें बांधते हैं कविता के उद्गार, उसके भाव और 'सन्नाटा बुनता है कौन' में भावों की विविधता मन को अलग अलग तरह से छूती है.कहीं ' यादों के झरोखों  से झांकता हुआ नटखट चांद' , अंधेरे कोनों में दिल में उतर उजाले भरती चांदनी' या 'आंगन में मेघ' प्रकृति के ऐसे ही न जाने कितने प्रतिमान मन को अपनी नाजुक छुअन से दुलरा जाते हैे तो कहीं मन के भीतर सलीब से धंसे स्त्री विमर्श के कुछ शाश्वत प्रश्न, चट्टानों के नीचे से सिर निकाल तन कर खड़े हो जाते हैं. हमने तो सब स्वीकारा पर 'तुमने कभी पूछा ही नहीं' बड़ी मासूमियत से कह दी चंद्रलेखा ने 'ग्रांटेड' की तरह बरते जाने की पीड़ा.
सहज शब्दों में प्रभावशाली ढंग से बड़ी बात कह देना, यह एक और विशेषता है इस संग्रह की कविताओं की.
जिंदगी में जीने के लिये जरूरी हैं सांसें
किंतु
सासें ही जिंदगी हो, जरूरी तो नहीं
मात्र दो शब्द और सारा फलसफा जीवन के गोरखधंधे का आ समाया.ऐसे ही बहुत से खूबसूरत स्टॉपेज हैं इस संग्रह के सफर में .
'भोली नन्हीं मुस्कानों के रिचार्ज कूपन हो' या 'बैरंग लौटती भूख'......सार्थक पढ़ने का लुत्फ उठाया हमने अपनी इस बीमारी के दौरान.

धन्यवाद चंद्रलेखा.


4 comments:

umashankar said...

बड़ा दम है आपकी लेखनी में। बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया और आपके शब्दों के लहर में बह गया। जरूर पढूंगा "सन्नाटा बनता है कौन" पर आप भी लिखते रहिये।

namita said...

धन्यवाद, उमाशंकर जी, आपके शब्द हमारे मन में कलम उठाने का नया जोश भर देते हैं.हां,इधर रचना प्रक्रिया थोड़ी धीमी चल रही है पर शीघ्र ही कुछ व्यस्थित करते हैं. वैसे आप सर्दियों में अपनी गांव यात्रा से कोई कहानी नहीं बटोर कर लाये. जामुन के पेड़ सी कोई बचपन की यादों में पगी.उस तरह की कहानियां हमारा जी जुड़ा जाती हैं.

poonam chandralekha said...

प्यारी नमिता दी, आपने 'मेरे सन्नाटे' को वाणी जिस खूबसूरती से दी है, पढ कर मन अभिभूत हो गया । बीमारी कभी किसी की भी अच्छी नहीं लेकिन आपने तो मेरे लिए इसे यादगार ही बना दिया । लिखने वाला तो बस लिख देता है, उसे खुद मालूम नहीं होता कि वह क्या और कैसा लिख रहा है पर आप जैसे स्नेही और संवेदनशील पाठक ही भावों को अर्थ देते हैं । आप मेरे लिए बहुत 'खास' है धन्यवाद कहकर इसे सामान्य नहीं बना सकती। प्यार भरा आभार के अलावा.आपका स्नेह बना रहे !! बस जल्दी से स्वस्थ हो जाइए शुभकामनाएं!!!

Unknown said...

Chandalekha ji kya app mujhe apni book ka publish place or publish year bra sakti hai