Wednesday, March 21, 2018

फगुनाया बौगनबिलिया

लोग कहते हैं, सुगंध फूल की आत्मा होती है और मैं सुगंधहीन हूं सो मैं बेजान सा हूं । न, मुझे सुगंधित फूलों से न शिकवा है,न शिकायत, न ही किसी प्रकार की ईर्ष्या । मैं केवल अपने होने को जीता हूं। और हां जब बात रंगो की आती है तो मुझे एक सम्पूर्ण पुष्प न मानने वालों के मुंह पर भी ताला जड़ जाता है। लाल, बैंजनी, रानी, पीला जैसा चटक रंग हो, कोमल गुलाबी, लजीला उन्नाबी हो या फिर शफ्फाक सफेद ही क्यों न हो, मेरा हर रंग सर चढ़ कर बोलता है—होली के गुलाल सरीखा । नहीं इतरा नहीं रहा हूं, बस बता रहा हूं।
वैसे आपको नहीं लगता कि कोमलता जैसे मुझमें समा सांसें लेती है। किसी क्लासिकल नृत्यांगना की आलता लगी हथेलियों सी मेरी नाजुक पांखुरियां जब हवा की धुन पर थिरकती हैं तो जैसे अपने आप को भुला दरवेशी हो जाती हैं, अपना घर दुआर त्याग बस उसमें जा मिलने को आतुर। देखा है आपने किसी और फूल को यूं अपनी खिली खिली काया ले माटी से गले आ लगते । जीवन का उत्सव और वैरागी मन दोनों सजो रखे हैं हमने अपने आप में। पर अभी तो फागुन मन में उतर आया है तो आइये जी भर कर रंग जियें।








All the pictures by Sunder Iyer. #Sunder Iyer. .

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