2017,
वर्ष समाप्ति के करीब है. सोचा कुछ और फूल खिल जाय,हरसिंगार के इस पृष्ठ
पर तो आज का फूल है--- कुटज. नहीं सुना है न नाम या फिर बिसर गया होगा.
कुटज या कूटज...यूं कूट घड़े को भी कहते हैं और शायद इसीलिए अगसत्य मुनि को
भी इस नाम से जाना जाता है. लेकिन बात हो रही थी कुटज के पौधे की. बड़ा
अलमस्त होता है ,यह. अमलतास, गुलमोहर सरीखा, विकट गर्मी में, भयंकर चट्टानी
पहाड़ियों पर, दूर दूर तक फैले वीराने में, लबालब सफेद फूलों से भरे झूमते
इस तकरीबन दस-बारह फीट ऊंचाई के पौधे को देखना, बूंद-बूंद जीवन जिजिविषा को भीतर उतारने जैसा अनुभव होता है.
कोई देखे या न देखे, कोई पहचाने या न पहचाने, यह अपने हिस्से का रस धरती पर छलकाता रहता है. वैसे ऐसा भी नहीं है कि इसका कहीं जिक्र हुआ ही न हो. कालिदास जब मेघ से मनुहार कर रहे थे,प्रियतमा के पास संदेशा पहुंचाने को तो उसकी अभ्यर्थना करने को रामगिरि पर यही कुटज मिला था उन्हें.
तो चलिये आज कुटज के बहाने एक वादा करें खुद से कि हम भी कुटज से कुछ सीखें. भीतर से गहराई तक जा खोज लायें जीवन को, रस के श्रोत को और अपनी सामर्थ्य भर लुटायें उसे. वीरान हो रही है न अपनी धरती. अंजुरी अंजुरी भर ही सही रस का अर्ध्य तो अर्पण करना पड़ेगा.
और एक बात ..बिखरे पड़े हैं कुटज अपनी माटी पर.दूर दराज, चकाचौंध से अलग,अपनी साम्रर्थ्य भर लोगों का दुख दर्द हरते, बहुतों के जीवन में रंग घोलते..तो चलते चलाते अगर कहीं मिल जायें ऐसे कुटज तो कुछ साथ हम भी दे दें उनका और कुछ बतकही उनके विषय में भी करें हम आपस में.
कोई देखे या न देखे, कोई पहचाने या न पहचाने, यह अपने हिस्से का रस धरती पर छलकाता रहता है. वैसे ऐसा भी नहीं है कि इसका कहीं जिक्र हुआ ही न हो. कालिदास जब मेघ से मनुहार कर रहे थे,प्रियतमा के पास संदेशा पहुंचाने को तो उसकी अभ्यर्थना करने को रामगिरि पर यही कुटज मिला था उन्हें.
तो चलिये आज कुटज के बहाने एक वादा करें खुद से कि हम भी कुटज से कुछ सीखें. भीतर से गहराई तक जा खोज लायें जीवन को, रस के श्रोत को और अपनी सामर्थ्य भर लुटायें उसे. वीरान हो रही है न अपनी धरती. अंजुरी अंजुरी भर ही सही रस का अर्ध्य तो अर्पण करना पड़ेगा.
और एक बात ..बिखरे पड़े हैं कुटज अपनी माटी पर.दूर दराज, चकाचौंध से अलग,अपनी साम्रर्थ्य भर लोगों का दुख दर्द हरते, बहुतों के जीवन में रंग घोलते..तो चलते चलाते अगर कहीं मिल जायें ऐसे कुटज तो कुछ साथ हम भी दे दें उनका और कुछ बतकही उनके विषय में भी करें हम आपस में.
No comments:
Post a Comment