Wednesday, January 22, 2020

गीत

भरी दोपहरिया जब देखी हमने बरगद की छाया
सच कहते हैं , साथ तुम्हारा हमको बेहद याद आया।

जलती धरती पर नंगे पैरों का सफर हो कितना भी लम्बा
रोम रोम शीतल कर जाय तेरे नेह की गंगा

भाग के आये तेरी छाया जब जब मन घबराया
साथ तुम्हारा हमको.........

बिन छत की दीवारों से होते गर न तुमको पाते
कैसे फिर करते बोलो मरू में भी पलास की बातें

इसीलिए तो कहते हैं, तुमसे है जीवन पाया
साथ तुम्हारा हमको.......

बसंत गीत 2

बसंत ने गुनगुनाया एक गीत प्रेम का


रंगों भरी गागरिया कांधे पर लादे
थिरक थिरक नाचे धरती गलियों औ चौबारे

चटका पलाश और रच गया एक गीत प्रेम का
बसंत ने.....


फूली सरसों के संग उमगे गोरी का मन
देहरी की ओट तके रतनारे नयन

महका पवन और लिख गया एक गीत प्रेम का
बसंत ने........

बसंत गीत

लोगों को बौरा जाता है, महुये का मादक रस
मुझको तो पागल करता है, फूली सरसों का आंचल।

सोंधी माटी की महक मन प्राणों पर छाती
खनकती हवा बस यादें तेरी ही लाती

गुनगुनाते खेतों की धुन पर शोग मचाती पायल
मुझको तो पागल करता..........

दूर तलक फैला बासंती वातायन
मेरे तन पर लिपटी तेरी चाहत का रंग

जलपाखी बन साधें करती हलचल
मुझको तो पागल करता है........