भरी दोपहरिया जब देखी हमने बरगद की छाया
सच कहते हैं , साथ तुम्हारा हमको बेहद याद आया।
जलती धरती पर नंगे पैरों का सफर हो कितना भी लम्बा
रोम रोम शीतल कर जाय तेरे नेह की गंगा
भाग के आये तेरी छाया जब जब मन घबराया
साथ तुम्हारा हमको.........
बिन छत की दीवारों से होते गर न तुमको पाते
कैसे फिर करते बोलो मरू में भी पलास की बातें
इसीलिए तो कहते हैं, तुमसे है जीवन पाया
साथ तुम्हारा हमको.......
सच कहते हैं , साथ तुम्हारा हमको बेहद याद आया।
जलती धरती पर नंगे पैरों का सफर हो कितना भी लम्बा
रोम रोम शीतल कर जाय तेरे नेह की गंगा
भाग के आये तेरी छाया जब जब मन घबराया
साथ तुम्हारा हमको.........
बिन छत की दीवारों से होते गर न तुमको पाते
कैसे फिर करते बोलो मरू में भी पलास की बातें
इसीलिए तो कहते हैं, तुमसे है जीवन पाया
साथ तुम्हारा हमको.......