Thursday, September 15, 2022
ओमकारेश्वर -- यात्रा का पहला दिन
हम लोगों ने अपनी ओंकारेश्वर यात्रा 03.09, 22 को प्रारम्भ की। 04. 09.22 को करीब साढ़े ग्यारह बजे हम लोग खंडवा पंहुच गए। स्टेशन के बाहर आते ही कई टैक्सी कैब वाले मिले। एक- एक कप चाय पी कर हम राजू भाटिया के साथ ओंकारेश्वर के लिए चल दिए। सड़क मार्ग पर निर्माण कार्य के चलते रास्ता थोड़ा धूल भरा था किंतु गाड़ी बहुत आरामदायक थी और हमें कोई परेशानी नहीं हुई। रास्ते भर बहुत सारी जानकारी देते हुए राजू ने हमें लगभग एक बजे ओंकारेश्वर पंहुचा दिया। उसने हमें अगले दिन ओंकारेश्वर से महेश्वर जाने के लिए एक दूसरे ड्राइवर का नम्बर भी दिया और साथ ही यह आश्वासन भी दिया कि यदि उनसे बात-चीत तय नहीं हो पाती तो हम उसे कॉन्टेक्ट करें, वह कोई न कोई प्रबंध खंडवा से ओंकारेश्वर आने वाले किसी ड्राइवर से बात कर के करवा देगा। हमारी बात उसके बताये व्यक्ति से हो गई थी अतः हमने उसे फोन नहीं किया किंतु उसने स्वयं ही फोन कर के हमसे पता किया कि हमारा महेश्वर जाने का प्रबंध हो गया या नहीं। आप कह सकते हैं कि इसमें ऐसा क्या खास है। य़ह तो उन लोगों का काम है, एक- दूसरे से संबंध बनाने के लिए वे यह सब करते रहते हैं। बात में तथ्य है। हम मानते हैं कि यह एक व्यवसायिक व्यवहार का मामला हो सकता है पर हम इसे दूसरे नजरिए से भी देखना पसंद करेंगे। आप नई जगह जाते हैं, नये लोगों से उनके क्षेत्र में मिलते हैं और वे आपके साथ आत्मीयता से पेश आते हैं, आपकी सुविधा- असुविधा के प्रति सचेत रहते हैं तो मन को अच्छा लगता है न। वो वसुधैव कुटुम्बकम् वाली अनुभूति होती है न। मन आश्वस्त सा हो जाता है।
हाँ तो हम लोग ओंकारेश्वर पहुंच गए। मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग का गेस्ट हाउस ओंकारेश्वर की तीर्थ स्थलीय गहमा-गहमी से थोड़ा हट कर, थोड़ी ऊंचाई पर स्थित है। नहा- धो कर हम लोग मेन बिल्डिंग के डाइनिंग हॉल में दोपहर के भोजन के लिए पंहुचे। डाइनिंग ह़ॉल की बड़ी बड़ी खिड़कियों से नीचे बहती नर्मदा और उसके पार मान्धाता द्वीप पर बने मंदिर तथा अन्य इमारतों का विहंगम दृष्य स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। दूर परिक्रमा मार्ग में बनी विराट शिव प्रतिमा का पृष्ठ भाग भी दिखाई पड़ता है।
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मध्य प्रदेश पर्यटन विश्राम गृह के डाइनिंग हॉल से नर्मदा के उस पार का दृश्य
जब तक हम लोग लंच ले कर फ्री हुए हल्की बूंदा-बांदी प्रारम्भ हो गई थी पर एक तो यह हम लोगों की यात्रा का पहला पड़ाव था तो मन उछाह से उमग रहा था, दूसरे हमें ओंकारेश्वर से अगली सुबह ही निकल जाना था तो हमने समय को कमरे में बैठ बिताना उचित नहीं समझा और छतरी ले कर निकल पड़े, रिमझिम बारिश में भोले बाबा की नगरी का चक्कर लगाने। गलियों से निकलते, ढलान से उतरते हम जा पहुंचे नये पुल के एक छोर पर।
नये पुल से नर्मदा मैया के दर्शन
पुल पर उस समय बहुत दुकानें नहीं थी पर एक दो फोटोग्राफर बरसाती के नीचे अपना साजोसामान ले कर जमें हुए थे। मात्र दस रुपए में फोटो का झटपट प्रिंट निकाल कर दे रहे थे। सुंदर के गले में बड़े से लेंस वाला डी,एस.एल आर देख एक ने कहा , 'सर एक फोटो हमसे खिचवा लीजिए यादगार के रूप में' और हमने भी सोचा हाँ क्यों नहीं।यादें बटोरने,अनुभव इकट्ठा करने ही तो निकले हैं न। सच, बड़ा आनंद आया फुहारों में भीगते फोटो खिंचवाने में।
दस रूपए में खिंचवाई गई फोटो का बारिश के रस संग सुख
हम लोगों ने ओंकारेश्वर महादेव के दर्शन अगले दिन भोर में करने का निश्चय किया और वापस चल दिये ममलेश्वर महादेव के मंदिर की ओर।
रास्ते में हमें एक प्राचीन विष्णु मंदिर मिला। किसी समय यह मंदिर शायद काले पत्थरों का बना होगा। वर्तमान में मंदिर सफेद पुता हुआ है किंतु शिखर का काला रंग अभी भी उसके प्रचीन होने की कहानी कह रहा था। इसके अतिरिक्त गर्भ गृह के समीप दोनों ओर की दीवारों पर बनी मूर्तियाँ भी मंदिर के प्रचीन होने की गवाही दे रहीं थीं। इस मंदिर में अधिक भीड़ नहीं थी। सामने नर्मदा के दर्शन हो रहे थे। दूर लोगों की आवाजाही चल रही थी। हमारी तरह कुछ और यात्री भी इस मंदिर में आ रहे थे फिर भी, भोले बाबा की नगरी में विष्णु भगवान का यह स्थान अद्भुत शांति में लिपटा था और मन को सुकून पहुंचा रहा था।
विष्णु मंदिर का बाह्य दृश्य
विष्णु मंदिर परिसर में पुरानी मूर्तियाँ -- शंकर-पार्वती
मंदिर के खम्बों में आकृतियाँ
वहाँ से निकल कर पुल के रास्ते हम एक अन्य प्राचीन मंदिर तक भी पहुंचे। मंदिर बंद था किंतु शिवलिंग के दर्शन यहाँ भी हो गए। इस मंदिर से भी नर्मदा मैया के दर्शन होते हैं, किंतु यह मंदिर नर्मदा के किनारे काफी ऊंचाई पर बना है अतः द़ृश्यावलियाँ थोड़ी अलग अनुभूति जगाती हैं। एक मंदिर से दूसरे मंदिर तक जाते हुए किसी किसी स्थान पर पुल से नीचे झाँकने पर कुछ पुराने अवशेष, किसी पत्थर पर खुदी कोई आकृति, दरारों के बीच उग आई हरियाली के बीच कोई ढहता दरवाजा, सब जैसे गुहार लगाते हैं कि तनिक देर हमारे पास भी रुको, हमारे पास भी है बहुत सी कहानियाँ।
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