Tuesday, September 20, 2022

यात्रा के दूसरे दिन का प्रारम्भ -- ओंकारेश्वर 2

05.09 22 -- यात्रा के दौरान हम लोग वैसे भी जल्दी उठ जाते हैं। असल में जितना अधिक हो सके उस स्थान की आत्मा, अलग- अलग पहरों में उसके भिन्न रंगों को आत्मसात करने की ललक रहती है,न। हाँ तो, नहा- धो कर हम लोग छत पर आ गए। रात हमने अंधियारे के सागर में रौशनी के द्वीप सरीखे ओंकारेश्वर के दर्शन किए थे और इस समय सामने था भोर के फूटते उजास में खिलते कमल सा ओंकारेश्वर। अभी सूर्य भगवान नेपथ्य में ही थे पर स्वर्णिम आभा ने बाअदब, बामुलाहजा की आवाज लगानी प्रारम्भ कर दी थी। प्रतापी सम्राट किसी भी पल राजसभा में पधारने वाले थे। मंदिरों से आती शंख, घंटो की मद्धम आवाजें हवा में लहरा रहीं थीं। हल्के उजियारे में नहाई नर्मदा की कोमल तन्वंगी काया मन पर चंदनी लेप कर रही थी। हम लोगों ने निश्चित किया था कि नाश्ता वगैरह ओंकारेश्वर भगवान के दर्शन के बाद ही करेंगे, सो हम लोग मंदिर की ओर चल पड़े। इस बार हम झूला पुल पर से हो मंदिर तक पहुंचे। यद्यपि अभी दर्शनार्थियों की संख्या अपेक्षाकृत कम थी फिर भी पर्याप्त आवा-जाही प्रारम्भ हो गई थी। पुल पर फूल, प्रसाद की दुकानें सज गईं थीं। हम लोगों ने भी पुष्प आदि लिए और गर्भगृह की ओर प्रस्थान किया। एक पंडित जी को साथ ले हमने भगवान को जल अर्पित करने का सौभाग्य प्राप्त किया। बड़ा सा चमचमाता काँसे का लोटा और जल आदि का प्रबंध पंडित जी ने ही किया था। हमने अपनी पहली पोस्ट में भी जिक्र किया था कि ओंकारेश्वर में प्रसाद-पुष्प आदि के मूल्य और पंडितों के व्यवहार से हम अत्यंत प्रभावित हुए थे और इन पंडित जी के आचरण ने भी हमारी धारणा को पुष्ट किया। मुख्य गर्भगृह मध्य वाली मंजिल में है।
वह मंजिल जिस पर ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर स्थापित है। वहाँ से कुछ सीढ़ीयाँ चढ़ कर एक गलियारा आता है जिसमें भगवान भैरव जी का स्थान है और एक स्थान पर शिवलिंग स्थापित हैं, जहाँ एक परिवार को पंडित जी कोई पूजा आयोजन करा रहे थे। इस गलियारे में दीवारों पर कुछ प्रचीन मूर्तियाँ मिलीं जो मंदिर की प्राचीनता की एक मात्र गवाह हैं,वरना तो समय और समय की माँग के साथ-साथ मंदिर में बहुत सा नवीनीकरण हो गया है, जो कि बहुत सी दृष्टि से आवश्यक भी है।
भैरव महाराज
मंदिर की बाहरी दीवार पर बनी एक प्रतिमा। यद्यपि वस्त्र आदि से अलंकृत होने के कारण पूर्णतया दिखलाई नहीं पड़ रही किंतु दीवार पर उकेरी गई प्रतिमा प्रचीन है, ऐसा पता लगता है।
मंदिर की बाहरी दीवार पर एक खंडित मूर्ति। थोड़ी और सीढ़ीयाँ चढ़ कर हम लोग मंदिर की सबसे ऊपरी मंजिल पर पंहुंचे। यहाँ पर भगवान महाकालेश्वर स्थापित हैं। इस मंजिल पर उस समय बहुत अधिक लोग नहीं थे। एक ओर गर्भगृह में शिवलिंग है और सामने दरवाजे के बाहर नंदी महाराज विराजमान हैं।
महाकालेश्वर का स्थान नंदी महाराज के पीछे खूब बड़ा खुला- खुला सा बरंडा है, जहाँ पंडितों द्वारा हवन आदि कराने की व्यवस्था हो जाती है और इस बरांडे के आखिरी सिरे पर चारदीवारी पर स्थापित है भोले बाबा के विराट त्रिशूल और डमरू। यहाँ हम लोगों को मिली नन्हीं वैष्णवी। बमुश्किल पाँच-छः वर्ष की वैष्णवी, चंदन के टीके की कटोरी ले कर घूम रही थी, यात्रियों को टीका लगाती। यद्यपि वैष्णवी से बात कर के अच्छा लगा पर उसके विद्यालय न जाने की बात सुन कर मन थोड़ा दुःखी हुआ। ऐसा नहीं है कि सारी समझदारी किताबी पढ़ाई करने से ही आती है, किंतु एक नीव तैयार हो जाय तो विवेक को जागृत होने के लिए हवादार वातायन तो मिलता ही है।
महाकाल के सम्मुख बड़ा- खुला बरांडा। यहाँ से चारों ओर का विहंगम दृश्य दिखता है और अपूर्व शांति का अनुभव भी होता है।
महाकाल वाले बरांडे में त्रिशूल
वैष्णवी के संग
बरांडे में रखी कुछ मूर्तियाँ
बरांडे से दिखता नर्मदा नदी, झूला पुल का मनभावन दृश्य और ओंकारेश्वर मंदिर के नीचे एक अनमोल खजाना है, जहाँ अधिकतर यात्री जाते ही नहीं हैं। नीचे उतर, बाहर से रास्ता है एक गुफा का जिसमें आदि शंकराचार्य ने तप किया था। वे रुके थे इस गुफा मे। आज भी गुफा में पुरानी मूर्तियाँ और स्तम्भ आदि हैं जिन्हें धातु के गर्डिल आदि से सहारा दे कर संरक्षित किया गया है। सारी गहमा-गहमी और बाजार के कोलाहल के बीच यह शीतल शांति द्वीप मन को ऊर्जावान तो कर ही गया साथ ही हम श्रद्धानत हो गए एक बार फिर उस महान व्यक्तित्व के सम्मुख जिसने कश्मीर से कन्याकुमारी तक हमारे देश को एक सूत्र में बाँध दिया था। कैसे यात्राएं की होंगी इस महान योगी ने उस समय? कितनी दृढ़ इच्छाशक्ति, कैसा तप? सच अद्भुत है हमारी माटी, कैसे- कैसे रत्नों की खान।
हम ओंकारेश्वर में मांधाता द्वीप की परिक्रमा नहीं कर पाए थे। सुना है दो मार्ग हैं परिक्रमा के एक बड़ा और एक छोटा। परिक्रमा पैदल ही की जा सकती है। कई पुराने और सुंदर मंदिर हैं इस मार्ग पर । काफी बड़ा मार्ग है और उतार- चढ़ाव वाला भी। मंदिर दर्शन के उपरांत हम लोग गेस्ट हाउस आए। नाश्ता किया और फिर निकल पड़े अपने अगले पड़ाव महेश्वर की ओर।
लौटते समय पुल से नर्मदा मैया का भव्य स्वरूप All photos by Sunder Iyer

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