Tuesday, September 25, 2007

मेरा सबसे पहला दोस्त ..........


बोलना शुरू करने के बाद और school जाना शुरू करने से भी पहले का मेरा दोस्त है -राकेश चतुर्वेदी .यह अलग बात है ki राकेश से तकरीबन बाईस साल से मेरा कोई सम्पर्क नहीं है .where are u rakesh .which branch of allahabad bank .बस zindagi की व्यस्ततायें बढ़ गयीं aurphir milna नहीं हो पाया .हमें लगता है ki हमारे जीवन के हर दौर में ईश्वर लोगों से हमें एक खास मकसद से milaata है .
मेरी अम्मा और राकेश ki भाभी( जहाँ तक हमें याद है वह अपनी माँ को भाभी ही बुलाता था ।) बाबुपुरवा के. वेलफेयर सेंटर में एक साथ tailoring का course कर रहीं थी .वहां हम ही दो बच्चे अपनी माँ ke साथ आया करते थे
राकेश बहुत शांत और सीधा बच्चा था and i was outgoing even at that age .मैं उसे हाथ पकड़ कर
खेलने के लिए लाती थी,उसकी भाभी के पास सेऔर जब हम लोगो ने school जाना शुरू कीया तो भी साथ ही थे । in fact उस समय बाबुपुरवा कॉलोनी और kidwainagar के अधिकतर बच्चे उसी school यानी "kidwai school में ही जाते थे । स्कूल की building राकेश घर के सामने थी .kidwainagar के main चौराहे से थोड़ा सीधे चलिए और first left hand turn में मुड़ जाईए .बस उसी गली में बने मकानों में से एक में था हमारा पहला school .हाँ तो अपनी दोस्ती पर चलते हैं . स्कूली पढ़ाई का पहला साल था । साल के अंत में पहली बार parikshaa .परीणाम घोषित हुआ .राकेश क्लास में प्रथम आया और में दव्तीय .उसका मुझसे एक नंबर ज्यादा था .हमें ठीक ठीक याद नहीं हमने क्या अनुभव किया या कैसा लगा । पर कुछ तो जरूर रहा होगा मेरे चहरे पर कि दोनो रिपोर्ट कार्ड देखने के बाद राकेश ने मेरा हाथ पकड़ा और सीधे वीथेका दीदी के सामने .'दीदी ,मेरा आधा नंबर नीता को दे दीजीए '.उसकी आंखो से आंसू बह रहे थे । स्टाफ रूम में टीचर हँस भी रहे थे और शायद उसके भोलेपन पर न्योछावर भी हो रहे थे । मुझे समझ में नही आ रहा था की क्या करना चाहिए पर इतना उस उम्र में भी पता कि मेरे दोस्त ने जो कहा वह सबसे अलग और अच्छा है .अब हम दोनो रो रहे थे और विथिका दीदी दोनो को समझाने कि कोशिश .राकेश को तो शायद यह घटना याद भी नहीं होगी पर हम इसे कभी नही भूले । समय समय पर बात चीत के दौरान हमने कई लोगों को इसे सुनाया भी हैं .आज जब हम पीछे मुड़ कर देखते है तो लगता है कि राकेश की दोस्ती हमारी jindagii के दोस्ती वाले खाने का शगुन हैं । जीवन के हर पड़ाव पर ,हर मोड़ पर मुझे बेमिसाल दोस्त milte रहे हैं .friends who have valued me ,loved me ,and pampered me .उन्होने मुझ पर भरोसा किया iseeliye मुझे खुद पर विश्वास है .

3 comments:

ssingh said...

Very interesting article...

Sootradhaar said...

नमिता..
मेरा यह सूत्र वाक्य है " उपर-वाला बिना मकसद किसी को नही मिलाता " ऒर यही एक वाक्य मुझे अपना कमेन्ट छोडने को मजबूर कर गया..नही तो मै चुप-चाप किदवई नगर से होता हुआ पनकी मन्दिर पहुच चुका था..आपको अपने बचपन का दोस्त याद है एक छोटी सी घटना के साथ..तो वो भी कैसे भूल सकता है...चलिये आगे सफ़र पर चलते है....

namita said...

सूत्रधर जी
आपको इस पन्ने पर पा कर हम सच बहुत खुश है .बिना अपनी उपस्थिति दर्ज कराये चुप्चाप चले जते तो हमारे साथ बहुत अन्याय होता .
हां उसे याद तो हम ज़रूर होगे क्योकि उसकी दोस्ती वैसे भी कम लोगो से हो पाती थी पर बहुत सालो से कोई सम्पर्क नही हो ,पाया है .हम कान्पुर के और भी पुराने लोगो से सम्पर्क करने का प्रयास कर रहे है देखे कब कौन तक्रा जाता है
सच भुत मजा आया
नमिता