Friday, October 26, 2007

कोजागिरी ्पुर्णिमा

२६ अक्टूबर २००७ - आज सबेरे करीब चार बजे आंख खुल गयी । खिड़की के पास गये तो लगा कि आज सोसायिटी के कम्पाउन्ड मे कुछ ज्यादा उजाला है । पार्किंग की लाइट्स तो रोज जलती हैं पर आज रौशनी मे कुछ और बात है । अचानक याद आया कि रात पेपर मे कोजागिरि पूर्णिमा ’ के विष्य मे खबर पढी थी कि आज रात यानि २५ और २६ के बीच वाली रात का चांद वर्ष का सब्से बडा और चमक्दार चांद होगा । अरे ,आज तो शरद की पूनो थी । क्या इसी को महारषट्रा मे कोजागिरि पूर्णिमा कहते हैं ।हमने सोचा यह पड़्ताल बाद में करेगे पहले चले जरा चांद देख आये।
पीछे सोमेश्वर्वाड़ी के पांडुरंग मन्दिर से कीरतन की आवाज आ रही थी । हम भी मन्दिर की ओर की सड़क पर मुड़ लिये । सड़क पर दूर तक सन्नाटा था ।अंधेरा तो छटा नही था अब तक पर साम्ने सड़क पर दूर तक चांदनी बिछी हुई थी ।किनारे खड़े लाइट पोस्ट भी अप्ना योग्दान देने की कोशिश कर रहे थे ।किसी झोपड़ी के बाहर ब्वाय्लर सुलग रहा था ।उसके पाइप से निकलता धुआ इठ्लाता हुआ सड़्क पार कर पे ड़ों की फुन्गियों पर फूलो के गुच्छों सा खिला था ।सीधी सड़क के अंत मे शिव मन्दिर के पार चां द पीपल की डाल पर हिंडोला झूल रहा था । सच कित्ना बड़ा चांद ,दोनो हाथो संभाला न जाये इतना बड़ा और चमक्दार कितना .... चांद य़ूं तो नीली धुंध के पार चम्कता लगता है पर आज जैसे झल्मल कर रहा था ।इत्ना पास लग रहा र्हा था कि हाथ बढाओ तो झप्प से कूद आयेगा । अब तक हम मंदिर के बिल्कुल पास पहुंच गये थे । उधर पांडुरंग मन्दिर मे कार्यक्रम खतम हो गया था और लोग शिव मंदिर की ओर आ रहे थे । हमने पूछा आज इतनी जल्दी भजन कीरतन क्यों ? कुछ विषेश क्या?
हमे पता चला कोजागिरि पूर्णिमा मूलतःखरीफ की फसल के खेत से कट घर आ जाने का त्योहार है । इस दिन सारी रात जग कर धन धान्य की देवी लक्छ्मी का आह्वान एवं प्रतीक्छा की जाती है ।रात भर जगते रहे इस्लिये लोग एक जगह एक्त्र हो भजन-कीर्तन,गाना -बजाना,अन्त्याक्छरी,खेल ,तमाशा,आदि करते हैं। हमे याद आया कि हमारी अम्मा भी बताती हैं कि वे जब छोटी थी तो शरद पूर्णिमा की रात गांव मे टोला मोहल्ला की औरते इक्ठ्ठा हो खेल खेलती थी , स्वांग रचाये जाते थे । पर उत्तर प्रदेश मे क्या अब भी ऐसा होता है ? हमारा बचपन तो यू पी के शहरो मे बीता है । हमे तो शरद पूर्णिमा की बस इत्ती याद है कि जब हम छोटॆ थे तो अम्मा खीर बना कर बर्तन के मुह पर कपड़ा बांध आंगन की चांदनी मे रख देती थी ।कहती थी इस रात चांद से अम्र्त बरसता है ।खीर मे अम्र्त मिला हमे खिलाती थी ...शायद भग्वान से परिवार जनो की लम्बी उम्र की दुआ की जाती होगी इस तरह ।
लेकिन पुणे जैसे आधुनिक अवम विक्सित शहर मे आज भी इस त्योहार का इत्ने परम्परागत ढंग से मनाया जाता देख मन जुड़ा गया । नव्रात्री मे देवी नौ दिन महिषासुर से युद्ध कर विश्राम की अवस्था मे चली जाती है। कोजागिरि पूर्णिमा की रात उन्हे जगाया जाता है और घर मे प्रविश्ट होने का आह्वान किया जाता है ।ऐसी मान्य्ता है ।काजोगिरि का मत्लब कौन जग रहा है । अस्विन माह मे चौधवे दिन पड़्ती है यह। इस दिन लोग उप्वास भी रख्ते हैं ,मात्र पेय पदार्थो का सेवन करते हैं जैसे नारियल पानी , दूध आदि । पुणे नगर महापालिका द्वारा सन्चालित दो बड़े उद्यान इस पूर्णिमा की रात खुले रहे ताकि लोग बाग अप्ने दड़्बों से बाहर आ प्रक्रिति के सानिध्य मे चांद के इस चम्त्क्रित करते रूप का पूर्ण आनन्द ले सकें । चांदनी मे सराबोर हो सके ।अनुकर्णीय है ना उन्का यह कदम ।
बन्गाल मे भी शरद पूर्णिमा के दिन लक्छ्मी की पूजा होती है । देवी के छोटॆ छोटे पैर बनाये जाते है घर के दर्वाजे से अन्दर तक । देवी का प्रवेश हेतु आह्वान ।
हम रात भर तो नही जागे इस कोजागिरि पूर्णिमा पर लेकिन चांदनी मे जरूर भीग लिये । देवी के इस प्रभास से मन की तिजोरी भर गयी वरड्स्वर्थ के डैफोडिल की तरह ।जैसी क्रिपा देेवी की हम पर हुई भग्वान करे सब पर होये ।

2 comments:

दिलदार said...

All good ones. bring back the Namita I used to look towards for strength and support. deep, mature and full of thoughts. looks like you are typing in roman and it doesn't come back completely in devnagri. why not type hindi or use a better tool.

namita said...

thanks for reading my posts and having faith in me . it gives me strength and encourages me to be me . yes earlier i was typing in roman now i am using another tool and am in constant touch of online guidance .hope to learn fast .