Wednesday, November 23, 2011

बनारस के विश्वनथ मन्दिर में मेरा एकान्त....

इस बार ,यानि सितम्बर २०११ में बनारस जाने पर बहुत सारा समय अकेले घूमने में बिताया.अकेले घूमना और अकेले बैठना हमें बहुत पसन्द है अगर हम प्रक्रिति के बीच में हैं.चूंकि यह समय बनारस हिन्दू युनीवर्सिटी के कैमपस में बिताना था ,इसलिये हम इसके प्रति उत्साही थे.और संयोग देखिये कि जिस विभाग में सुन्दर को काम था वह कैम्पस के विश्वनाथ मन्दिर के बहुत समीप था तो इधर सुंदर विभाग में होते और उधर हम मन्दिर में.

एक किताब हाथ में ले हम भगवान जी को हाथ जोड़ने के बाद मन्दिर के ऊपरी तल के पीछे वाले हिस्से में जाते और बस समय कैसे बीतता पता ही नही चलता.मन्दिर के पीछे क्या था ,यह तो पता नहीं पर वहां ऊंचे ऊंचे खूब हरे पेड़ थे.मन्दिर के पत्थर का लाल रंग और पड़ों का हरा मिल कर नीले आकाश तले ऐसी अर्ध चन्द्राकार रंगोली सजाते लगते की मन एक मीठी चुप में गुनगुनाने लगता.हम जगह बदल बदल कर बैठते कभी बरांडे में और कभी बाहर खुले में.खुले में बैठने पर हवा का अधिक आनंद मिलता और मन्दिर का साइड का हिस्सा अपनी पूरी ऊंचाई में दिखाई पड़ता.आकाश की ओर सीधी एकटक द्रिष्टी से ताकते मन्दिर के शिखर को देख हमे हमेशा लगता जैसे कोई तपस्वी एक टांग पर खड़ा हो अपने दोनों हाथ ऊपर को उठाये ,नमस्कार की मुद्रा में जोड़े.शिखर के एकदम ऊपरी टिप पर नजर गड़ा कर देखते रहने पर ऐसा लगता जैसे ऊपर पसरे नीले आसमान से कोई अपनी ओर खींच रहा है.जैसे केवल शरीर वहां बेंच पर रह गया हो और मन हवा के संग उड़ चला हो उस अजाने देश की ओर, उड़ता हुआ ऊपर और ऊपर.
कभी कभी हम सामने की ओर बैठ भजन सुनते थे.शांत एवं खुले खुले बरांडों में घुमड़ती गायक की आवाज के संग हार्मोनियम की धुन मन को बहुत शांति पंहुचाती.
नीचे वाले तल में भगवान शिव ,लिंग रूप में स्थापित हैं और उपारी तल में मूर्ति रूप में.इसके अतिरिक्त ऊपरी तल पर मां दुर्गा और भगवान राम के भी स्थान हैं.मन्दिर की दीवारों पर संगमरमर के पट्टॊं पर विभिन्न पौराणिक संदर्भ अंकित हैं,सम्पूर्ण गीता भी मन्दिर की दीवारों पर लिखी हुई है .










अपने साथ बिताये हुये ये पल हमें बहुत कुछ दे गये हैं जिन्हें शब्दों में बांध पाना हमारे लिये बेइन्तहा मुश्किल है.
(all mobile pics clicked by me) 

11 comments:

Nupur said...

Namita, aap bhale hi apne anubhav ko shabdon me bhandhane me asamrth pa rahe ho par hum us ahssas ko mahsoos kar pa rahen hain.
Pata nahi hame bheed wala mandiron ma kahi prabhu nazar nahi aaye. Jahan koi na ho, ek nananha sa deepak ho bhagwan ke samne, agarbatti ki aadi tirchi rekha ho ....aur hari bhari si vadi ho...bus Prabhu to vahin hain hamare...

Vishwanath jane ka abhi tak to mauka nahi mila hain dekhena hai kabhi...

Sufi said...

सच कहा दी...बेहद सुंदर मंदिर है...एकांत का भी अपना ही मज़ा है...और वो भी ऐसे स्थान पर...आह...मैं कहाँ हूँ..???
Priya

namita said...

नूपुर...बस इसीलिये तो तुम्हारा आना हमें इतना अच्छा लगता है.तुम अपने कमेन्ट्स में भी हमें सार्थक पढने का सुख दे जाती हो.सच है प्रक्रिति में ही प्रभु के होने की अनुभुति होती है.छोटी सी मठिया हो लेकिन फ़ूलों पेड़ों से घिरी और दिये की रौशनी,धूप,अगर की सुगंध.......तुमने बिल्कुल मेरे मन की बात कही.

नमिता

Shruts said...

Beautiful words maasi.. U ve poured down your feelings and experience in such a way that I can visualise it clearly :)

namita said...

Thanks a lot Shruti.I always wait for comments from u people .It gives such a boost to be understood and to share once heart felt feelings with u youngsters.

love
Masi

Incognito Thoughtless said...

हालांकि फोन और मुलाकात में सब बात कर चुके हैं पर....

ये काशी विश्‍वनाथ का वही ऐतिहासिक मंदिर है...

हम यह क्‍यों पूछ रहे हैं क्‍योंकि हमने नया वाला देखा है गौतम जी के साथ-संगमरमर का।
अस्‍सी के तट पर चलकर किसी कोने में बैठकर छोटी सी कुज्‍झी में चाय का मज़ा लेने का भी एक मज़ा है...। पर मंदिर के इस एकांत और मौलिकता नीरवता को पढकर बेसाख्‍ता वहां जाने का मन हो आया। न जाने कब जा पाएंगे...।

सुन्‍दर है सब।

namita said...

अनुजा...यह एतिहासिक वाला मन्दिर नहीं है.वही संगमरमर वाला है.उसके चारों ओर तो लाल पत्थर से ही ये मन्दिर के शिखर से आकार बने हैं
सच है ,अस्सी की वह चाय की दुकान पेड़ के नीचे वाली...वहां बैठ चाय की चुस्कियों के साथ गंगा से बतियाना हो या फ़िर यूं ही आपस की गपशप...एक अलग ही आनंद है.
नमिता

Udan Tashtari said...

कई बार अहसासों को उकेरने में शब्द सामर्थय कमजोर नजर आता है किन्तु आपने बहुत खूबी से उकेरा है उन अहसासों को...अच्छा लेखन.

namita said...

धन्यवाद समीर जी...आपको अपने ब्लाग स्पाट पर देख कर बहुत प्रसन्नता हुई.हम बहुत नियमित रूप से सक्रिय नहीं रह पाते इसलिये बहुत कुछ मिस कर जाते है .पर आपकी उपस्थिति के हम बहुत आभारी है.
नमिता

pawan jain said...

namita...i always knew......u r a good writer.......today......achanak kahin jikar hua......aur tumhe talash kiya......

namita said...

Hi Pawan
What a pleasant surprise.जान कर अच्छा लगा कि अब भी हम याद किये जाते हैं.हमारे ब्लाग्स्पाट मे आने के लिये अतिशय धन्यवाद.
How are things at your end?

नमिता