Saturday, October 1, 2022

महेश्वर में नर्मदा रिसोर्ट

हम लोग पाँच तारीख को तकरीबन दोपहर एक बजे महेश्वर मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के गेस्ट हाउस नर्मदा रिसोर्ट पंहुच गए थे। गाड़ी से बाहर आते ही एक नजर गेस्ट हाउस पर पड़ी और मन प्रसन्न हो गया। चेक इन टाइम दो बजे का था और हमारा कमरा अभी साफ हो रहा था अतः रिसेप्शन पर फॉर्मेलिटी पूरी कर के हम लोग चाय पीने के लिए पीछे की तरफ चले गए। बाहर काँच के पार नर्मदा का चौड़ा पाट दिख रहा था। हम लोग जहाँ बैठे थे वहाँ से बाहर खूब बड़ा खुला टेरस था जिसके बाद बस थीं तो नर्मदा, दूर- दूर तक। हम लोग तीन दिन महेश्वर में रहे और भोर के धुंधलके, अलस सुबह के फूटते उजास, नभ से धीरे- धीरे नर्मदा पर उतरती साँझ से ले कर खूब खिले चाँद वाली रात तक, गरज यह कि दिवस के हर मूड को हमने इस टेरस और टेरस के बगल से सीधे नर्मदा तक जाती सीढ़ीयों पर जिया और खूब छक कर जिया। टेरस और सीढ़ीयाँ ही क्यों नर्मदा और जल में स्थित बाणेश्वर मंदिर के दर्शन तो हमें अपने कमरे से भी होते थे।चाय का कप ले कर टेरस पर खड़े हो या फिर नीचे उतर कर सीढ़ी पर बैठे हो.ऐसा लगता था हम किसी बड़े से समुद्री जहाज पर सवार हैं और जहाज हौले- हौले नर्मदा पर डोल रहा है। हम लोगों ने पहले दिन का सूर्योदय वहीं रिसोर्ट से देखा था, सीढ़ीयों पर बैठ कर। ओस में भीगी ताजा भोर, आस-पास की घास और अनाम वनस्पतियों से उठती गंध, गुलाबी, लाल, पाीले आंचल लहराती, आकाश के सीने पर अपने नाजुक पंजों पर धीरे- धीरे डोलती किरणें, सामने बाणेश्वर मंदिर की उजागर होती आकृति,दूर नर्मदा के जल पर तिरती नावें और इस चमत्कारिक क्षण को अपने भीतर बूंद बूंद उतारते हम - अहा, कैसी तो शांति में डूब गए थे मन प्राण। उस दिन थोड़ी -थोड़ी दूरी के अंतर में अलग- अलग सीढ़ीयों पर बैठे थे हम सब और फिर गाया था भजन। इतनी अलौकिक ्अनुभूति थी, वर्णननातीत। ऐसे ही उस चाँद वाली रात टेरेस पर बिताए गए पल भी जैसे सपनों की नीली रौशनाई में डुबो लिखे गए थे। नीचे नर्मदा अंधेरे में डूबी थी पर हवा के हर झोकें में उसकी छुअन थी। नर्मदा के उस पार किनारे पर कहीं- कहीं बत्तियाँ तारों सी टिमटिमा रहीं थीं। दूर कहीं कोई मल्लाह कुछ गा रहा था। शायद अकेला नर्मदा में नाव खेते अपने भीतर के किसी अनजाने द्वीप की यात्रा कर रहा था। ऐसे ही हैं एक दोपहर के कुछ पल जो खाना खा कर कमरे में लोटते समय, लॉन के पास वाले बड़े पेड़ के चबूतरे पर बिताए थे। वैसे भी हमें सुनहरी, शांत दोपहरें, बड़े बड़े छायादार पेड़ों के बीच बहुत मनभाती हैं। तो उस दिन भी दोपहर कुछ ऐसी थी। एक आध माली ल़ॉन में काम कर रहे थे। ताजा कटी हुई घास के ढेर से भीनी खुशबू उठ रही थी। कुछ बेमकसद कीट- पतंगे दोहपर की शांति में अपनी गुनगुनाहटें बिखेर रहे थे। उनकी गुनगुन चारों ओर पसरी शांति को जैसे और गहरा रही थी। महेश्वर के नर्मदा रिसार्ट की बात करें और वहाँ के डाइनिंग हॉल के विषय में कुछ न कहें तो बात पूरी नहीं होती। डाइनिंग हॉल का नाम है हैंडलूम कैफे और यह नाम बहुत कलात्मक तरीके से धागों के द्वारा लिखा गया है। हमने जब पहली बार इसे देखा और पढ़ा तो सोचा कि रिसोर्ट के भीतर ही कोई महेश्वर हैंडलूम का शो रूम वगैरह है। भीतरी सजावट भी बहुत कलात्मक है। लूम की पूनियों से बनी हुई वॉल हैंगिंग, सीलिंग से लटकते झाड़फानूस आदि सबमें कपड़ा बिनाई में प्रयुक्त होने वाली चीजों का ही उपयोग किया गया है। हम लोगों ने इस रिसोर्ट मे अपने दिन बहुत इंज्वॉय किए। यहाँ के स्टाफ का व्यवहार भी बहुत ही अपनत्व से भरा था। यूं भी वो गणपति बप्पा के दिन थे तो रोज शाम रिसेप्शन वाले हॉल में धूप. दीप, अगर के साथ आरती होती थी, प्रसाद वितरण होता था। दस दिन के लिए बप्पा स्थापित थे वहाँ। हमें तो चहुं ओर बप्पा और मैया की ही कृपा बरसती नजर आ रही थी।
यह पहला वह दृश्य था जो रिसोर्ट पंहुचने पर हमने देखा।
भोर की प्रार्थना, रिसोर्ट की सीढ़ीयों पर बैठ
एक और सुबह उन्हीं सीढ़ीयों पर
कमरे के बाहर से ही दिखता मनभावन दृश्य
रिसोर्ट में वह दोपहर
रिसोर्ट के डाइनिंग हॉल की कलात्मक साज-सज्जा की कुछ झलकियाँ
रिसोर्ट से ही सुबह- सबेरे बाणेश्वर महादेव के दर्शन
और जब उतरी साँझ
एक सुबह ऐसी भी All pictures @Sunder Iyer

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