देखिये परसों कहा था कि आगे की यात्रा पर कल चलेगें पर एक दिन यूं ही खिसक गया । यही तो जिन्दगी है ,सब कुछ जैसा सोचा ,जैसा चाहा वैसे ही हो जाये तो फिर अग्यात के आकरष्ण का आनन्द तो गया ही सम्झिये ना ।
खैर चलिये आगे की यात्रा पर ।
अब तक हम लोग माथुर साहब की प्रतिक्रियायों के अंदाज से परिचित हो चुके थे इस्लिये श्रिवास्तव जी के आते ही हम समझ गये थे कि वे पहले सुरछात्मक मुद्रा मे आ चुके है । और वही हुआ । एक सूट्केस जिसमे शायद कुछ कीमती सामान होगा उसे किनारे की ओर रखने के श्रिवास्तव जी के प्रयास को माथुर साहब ने सिरे से निरस्त कर दिया ।
’मेरे बैग को हटा कर अप्ना सामान रखने की सोच रहे हैं । यह नही हो पायेगा । ’
सच तो यह था कि वे किसी भी छोटे बड़े परिवर्तन से आशंकित हो उठते थे ।होता है ऐसा अक्सर जिस तरह की जिन्दगी जी होती है हमने , जैसे अनुभव होते है हमारे ,अन्जाने ही हम उनके अनुसार ही व्यवहार करने लग जाते है । ठहरी ,सपाट जिन्दगी काट लेने के बाद आदमी का रद्दो बदल के प्रति आंशकित होना स्वाभाविक ही है ।
हम सब ने मिल कर जगह बनायी और सब कुछ फिर से व्यवस्थित हो गया । गाड़ी चल दी । परिचय ,बातों का सिल्सिला शुरु हो गया । अब माथुर साहब भी फिर से निश्चिन्त थे ।
श्रिवास्तव जी से बोले ,’असल मे उस बैग मे मेरी दवाये है। आपने बुरा तो नही माना । अब चौसठ साल की उम्र हो गयी है । आप क्या समझेगे अभी । ’
बात सुन कर श्रिवास्तव जी और उनका बेटा एक दूसरे को देख कर मुसकराये फिर श्रिवास्तव जी बोले ,’ अरे तो मै कोई लड़का हू। मै भी बासठ साल का हो गया हूं ।’
लेकिन यह सच था कि उम्र का फ़र्क भले ही केवल दो साल का रहा हो , दोनो लोगो के व्यव्क्तित्व और तौर तरीको मे बहुत अन्तर था । बात फ़िर वही आ जाती है घूम फ़िर कर जिन्दगी ने आपको कैसे ट्रीट किया है इसका आपके हर क्रिया कलाप ,आत्म्विश्वास पर बहुत फ़र्क पड़ता है ।
माथुर साहब ने अपनी नौकरी मे दोनो बेटॊ को अच्छी शिक्छा दे दी । बेटे अच्छी नौकरियो मे है । सब साथ मे अच्छी तरह रह रहे है पर उन्होने जो जीवन जिया है और बच्चे जो जिस स्तर पर जी रहे हैं ,उसमे बहुत अन्तर है । बच्चो की उन्नति पर गर्व है खुद भीअब ऐसी कई चीजे देख सुन और भोग रहे है जिसकी शायद कभी सपने मे कल्पना भी ना की होगी । लेकिन इतनी तेजी से आये परिवर्तन से सामंजस्य बिठाना शायद स्वाभाविक तरीके से नही हो पा रहा था ।वो लगता है ना कि जैसे आपको अपने धरातल से उठा कर एक्दम कही हवा मे उछाल दिया गया हो । ऐसा केवल उन्ही के साथ नही हो रहा वरन आज अधिक्तर मधयम्वर्गीय मातापिता जो उम्र के इस दौर मे है ,उनकी ऐसी ही स्थिति है । जीवन स्तर से ले कर तक्नीकी चीजो मे जिस तेजी से विकास हुआ है कि तेजी से दौड़ते हुए हांफ़ रहे है फ़िर भी पीछॆ होने का डर साथ लगा ही रहता है ।
श्रीवास्तव जी इसी उम्र के दूसरे वर्ग का प्रतिनितिध्व कर रहे थे । बेटो से पहले ही उन्होने परिवर्तनो के साथ चलना शुरु कर दिया था और आज भी काम कर रहे है । एक लैपटाप बेटा ले कर चल रहा था तो दूसरा वे स्वयम । जितनी आफ़िसियल काल बेटा अटेन्ड कर रहा था उससे कम उनके सेल पर नहीं आरहीं थी । और इन सबका फ़र्क साफ़ दिख रहा था ।
उम्र और व्यक्तितव के सारे भेदो के बाव्जूद हम लोग काफ़ी अच्छी तरह से घुल्मिल गये । वत्र्मान से ले विगत तक की बातो का सिल्सिला शुरु हो गया । हम सब लोग किसी न किसी की शादी मे शरीक होने जा रहे थे ।
श्रीवास्तव जी की भतीजी की शादी थी । पुणे से लख्नऊ के बीच उनके अन्य रिश्तेदारो को भी इसी गाड़ी मे चढ्ना था । कोपर्गांव मे उनकी छोटी बहन और बह्नोई को आना था । हम लोगो की गाड़ी मे पैन्ट्री कार नही थी ।सुनीता जी यानि श्रिवास्तव जी की छोटी बहन चिकन बना कर लाने वाली थी । बेसब्री से कोपर्गांव का इन्त्जार हो रहा था । गाड़ी लेट हो गयी थी । हम लोग अपना खाना खा चुके थे ,पर सब लोग उनकी प्रतीक्छा कर रहे थे । वे लोग आये । परिचय हुआ । बाते हुई । सुनीता जी के पति ने माथुर साहब से कहा ,’ हम लोगो की वजह से आपको कष्ट हुआ । अभी तक बैठे रहना पड़ा । बड़े हैं आप ।’
माथुर साहब बोले ,’अरे बड़े हम कहां । आप हमारे मान्य है। आप के लिये तो हमे दर्वाजे पर खड़े होना चाहिये था ।’और जोर से एक आत्मीय ठहाका लगाया .
तो अब हम लोग सब एक परिवार के सदस्य थे । श्रीवास्तव जी ने कुशल पारिवारिक मुखिया का पद बखूबी सभाल लिया था । किस स्टेशन पर क्या चीज बढिया मिलाती है , कहां चाय पीना है ,कहां फल खाना है , सब उनके निर्णय पर था और हम सब मिल बांट कर खा ,बतिया रहे थे । रास्ते भर गाने गाए गए । सुनीता जी और स्नेहा की मधुर और सुरीली आवाज , सोनाली की धीमी आवाज मी सुरीची पूर्ण गाने , और इन सब मे श्रीवास्तव जी के साथ साथ माथुर माथुर साहब की भी भागेदारी । बहुत अच्छा लग रहा था । माथुर साहब बहुत सहज और फुर्तीले हो गए थे । शायद पुणे मी आई । टी । कम्पनी के बच्चो के बीच अपने समय के गुजर जाने का एहसास होता होगा । यहाम पुरानी बातो के दौर के बीच अपने होने का भान हो रहा होगा । उन्हें ही क्यो हम लोग भी कैसे मगन थे । श्रीवास्तव जी और सुनीता जी का बचपन भी मेरी तरह कानपुर मे बीता था । बालिका विद्यालय ए बी विद्यालय और जुहारी देवी , मेस्टन रोड की मूम्ग्फली और भी ना जाने कितने पुराने स्थान , रीगल टाकीज की इग्लिश फिल्म्स । खूब सैर हुई अतीत के गलियारों की ।
और फिर लखनऊ आ गया .माथुर साहब का भतीजा उन्हें लेने आ गया था । अपने सामान के साथ ट्राली पर श्रीवास्तव जी ने मेरा सूटकेस रखवाया । उनके बहनोई ने मेरे हाथ से एयरबैग ले लिया और बाहर आ कर पूरी पार्किग मे नंबर देख कर हमे लेने वाली गाड़ी देखी । सच तो यह है कि उन लोगो के बिना हम सच अकेले बहुत परेशान हो जाते । सूटकेस और बैग ले कर अकेले इतनी दूर का चक्कर लगाना संभव नही था । गाड़ी काफी लेट हो गयी थी इसलिए अंधेरा भी हो गया था । हमे गंतव्य की और सुरक्छित रवाना करने के बाद ही वे दोनो अपनी गाड़ी मे बैठे । जब कि उनका वाहन तो शुरू से ही वहा मौजूद था । वे लोग अपने घर के फंकशन के लिए लेट भी हो रहे थे लेकिन वह परिवार हमे अकेला छोड़ कर नही गया
यूं समाप्त हुआ हमारा यह सफर । काश जिन्दगी भी इस सफर की तरह हो पाती । जितनी देर साथ रहो ,मिल जुल कर एक दूसरे का ख्याल अपने से ज्यादा रखते हुए रहो और फिर बिना किसी अपेक्छा के अपने अपने रास्ते .अपेक्छाये जहा होती है वहा शिकायतों का होना लाजमी है । और फिर जिन्दगी इस सफर जितनी छोटी थोड़ी होती है । शायद इसीलिए सारे आध्यात्मिक गुरु कहते है कि जिस पल मे हो बस उसी पल तक अपना ध्यान सीमित रखो ।पल मे जीने से तकलीफे ,तनाव कम होते है ।
अविश्वास और शंकाओं के इस दौर मे विश्वास बनाए रखने की वजह तो थमा ही गया यह सफर.
2 comments:
Very beautiful description . The lines that come to my mind are : Choti si ye duniya, pehchaane raaste hai, pune-lucknow ke safar ke beech kabhi to aapke sah-yatri aapko milenge, to yeh blog zaroor dikhayiyega !
well said nanhi kali
तुम्हारे मुह मे घी शक्कर
Post a Comment