Saturday, December 8, 2007

्सफ़र-१....

बहुत दिनों बाद अपने से बतियाने बैठे हैं । हां ब्लाग मे लिखने को हम अपने आप से बतियाना ही कहते हैं। ब्लाग ही क्यों जो मह्सूस किया या जिया उसे शब्दों मे ढालने के लिये अपने अन्दर की यात्रा तो करनी ही पड़्ती है। ये दस्तावेज बनाने का मेरा अपना कारण है । हमे लगता है कि अगर कभी जिन्दगी से शिकायत करने का मन करे तो ये सनद रहे कि उसने हमे क्या क्या दिया है । छोटी छोटी खुशियों ,खुश्नुमा पलों ,प्यार दुलार के भावो का खजाना हम सब्के पास होता है, ऐसा मेरा विस्वाश है । हां यह बाद अलग है कि अक्सर हम ऐसी सौगातों को लम्बे समय तक याद नही रख पाते । इसीलिये हम इन्हे जब ,जहां, जैसे जिया के तर्ज पर सहेज कर रखते चलते हैं।

अब इसी बार की पुणे से लखनऊ की यात्रा की बात ले लीजिये । चलिये आपको ले चलने के बहाने हम भी एक बार फिर चलते है उस सफ़र पर । सफ़र कैसा रहा इसका फ़ैसला आप पर छोड़ते हैं।
गाड़ी का छूटने का समय तो तकरीबन सवा चार बजे शाम को होता है पर हम लोग जब साढे तीन पर स्टेशन पहुचे तो गाड़ी प्लेट्फ़ार्म पर लगी थी । गाड़ी शुरु ही इसी स्टेशन से होती है। हम जब अपनी सीट पर पहुचे तो देखा एक नाजुक सी कन्या पहले ही वहां बैठी थी। आपस मे बात्चीत हुई और हम दोनो ने राहत की सांस ली की चलो सफ़र का एक साथी तो ठीक ठाक मिला । सामान व्यव्स्थित कर हम लोग बैठ लिये ।
थोड़ी देर बाद एक छोटा सूट्केस हाथ मे लिये और कांधे पर एक बैग लादे एक सज्जन प्रविश्ट हुए। उम्र यही कोई बासठ तिर्सठ साल रही होगी मगर बेजार कुछ अधिक ही नजर आ रहे थे । सांस धौकनी की तरह चल रही थी । आते ही सूट्केस और बैग खिस्काया बर्थ के नीचे और सीट पर बैठते ही बिना किसी भूमिका के बोले ’देखा इतना जरा सा चलने मे ही सांस फ़ूल गयी । हम लोगो ने पूरी सहान्भूति से सर सह्मति मे हिलाये । अभी हमारे सिर हिलने बंद भी नही हुए थे कि उधर से एक वाक्य उछ्ला ’जब मेरी उम्र के होगे ,तब पता चलेगा ।’ हमारी समझ मे नही आया कि हमने भला कब उनकी उम्र के प्रति बेअन्दाजी की । पता नही उनकी शिकायत अपनी उम्र से थी या हमारी । खैर अभी हम इस धक्के से सभले भी नही थे कि एक सूचना और आयी ’एक बार हार्ट अटैक पड़ चुका है । ’यह शायद हमे चेतावनी थी कि हम उनसे कोई बह्स मुबाहसा ना करे रास्ते भर वर्ना लेने के देने पड़ सकते है । हमने इस सूचना को भी शालीनता से आत्म्सात करते हुए उन्हे आराम से बैठने को कहा । पानी की बोतल ले कर वे थोड़े व्यव्स्थित हो कर बैठे ही थे कि काफ़ी साजो सामान और शोरो गुल के साथ एक युवा दम्पति अपनी सात आठ साल की बिटिया को ले दाखिल हुआ । माथुर साहब पुनः व्यग्र ।
’कौन सा सीट नम्बर है आपका ? अरे इधर कहां सारा सामान रख रहे है? वगैरह वगैरह....
उनकी सारी चिनताओं को अपने हाथ के झटके से एक किनारे करते हुए नव्युवक ने कहा,’हां हां सब ठीक है । ना हमे सीट बांध कर ले जानी है ना आपको ।’
भला माथुर साहब इस अवग्या को चुप्चाप कैसे बर्दास्त करते । उन्होने तुरुप का पत्ता फ़ेका’उस बैग मे मेरी दवाये है । एक बार हार्ट अटैक हो चुका है ।’
इस बार युवक ने थोड़ा रुक कर उन्हे देखा और सारा गुस्सा जींस क्लैड अपनी स्मार्ट सी पत्नी पर उतार दिया ।
’अरे उधर रखो ना सामान ।’
पैसेज के उस तरफ़ की सीट वाले लड़कों से कुछ बात्चीत कर वे लोग उधर खिसक लिये ।
अभी गाड़ी छूटने ने मे काफ़ी समय था पर हम ठीक ठाक रूप से जम गये थे इस्लिये हमने अपने पति से कहा कि अब वे घर को चले । उन्हे भी लगा कि सारे सह्यात्री तो लग्भग आ ही गये हैं इस्लिये चला जा सकता है ।
हम लोगो ने एक दूसरे की ओर हाथ बढाया और विदा के हैंड्शेक के बाद वे नीचे उतर गये ।
अभी वे दो कदम भी नही चले होगे कि माथुर साहब ने फ़र्माया ’ये आपके पति तो थे नही ।’
हम हत्प्रभ। भला ऐसा क्या हुआ कि माथुर साहब हमारे अच्छॆभले बाइस साला पुराने रिश्ते के अस्तितव को बिल्कुल सिरे से नकार रहे है और वह भी पूरे आत्मविश्वास के साथ ।
हमने भी थोड़ा तुर्शी मे आ कर कहा ’क्यों आपको ऐसा कैसे लगा ?
हंमारी नाराजगी से बिल्कुल भी प्रभावित ना होते हुए वे बोले ,’अपने यहां पति पत्नी हाथ तो मिलाते नही हैं ।’
हमने थोड़ा व्यंग करते हुए कहा ’हां ,जिन्हे पन्जा लड़ाने से फ़ुर्सत नही मिलती ,वे भला हाथ कैसे मिलायेगे ।’
लेकिन मेरे व्यंग को बेकार करते हुए माथुर साहब पहली बार हसे और बोले ’मैडम मजाक अचछा कर लेती हैं।’
हमारी दोनो महिला सह्यात्री मुस्करा रही थी । उस बच्ची की मम्मी ने तो कहा ,अरे क्या करे अंकल गाड़ी है ना इसीलिये आंटी ने हाथ ही मिलाया ।
वातावरण सहज और आत्मीय हो चला था कि श्रीवासतव जी अपने बेटॆ बहू के साथ पधारे और कूपे की आठो सीटे भर गयीं । अभी तो गाड़ी प्लेट्फ़ार्म से खिसकी भी नही है ।
बाकी की यात्रा कल।

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