Friday, March 27, 2009

भुलेश्वर मन्दिर भाग २

सीढीयों से ऊपर दाहिने हाथ पर दीवार पर भगवान की एक मुर्ति है.सामने के खम्बे पर गणेश जी विराजमान है.बेइन्तहा सुकून भरा हल्का अंधियारा था यहां .चमकती धूप से आने के बाद तो यहां पसरी शीतलता जैसे आहिस्ता आहिस्ता शिराओ मे घुलने लगती हैं.छत पत्थर की आयताकार सिल्लियों की बनी है पर उस जगह पर खुली जगह है जहां से छन कर आती रौशनी मन्दिर के सामने के हिस्से मे फ़ैले अंधेरे को उजाले की झीनी परत मे लपेट रही थी.बीचो बीच मन्दिर है.गर्भ ग्रिह तक पहुचने के लिये दो और कमरो से हो कर गुजरना पड़ता है.इस पूरे भाग मे धूप अगर की गंध घुल रही थी.एक दो पंडित जी लोग कलावा आदि ले कर बैठे थे.पर वे आपको घेरने की मुद्रा मे कतई नही दिख रहे थे.भीतर दूर पीले लाल फ़ूलो मे लिपटॆ शिवलिंग के ऊपर पीतल का शिव जी का चेहरा चमचमा रहा था.उस अनुभुति का वर्णन कर पानेमे मेरे शब्द सर्वथा असक्छम है.बिल्कुल बाहर से एक एक देहरी पार कर धीरे धीरे ईश्वर तक आना ऐसा था जैसे सच अपने चारो ओर लिपटे माया जाल को आहिस्ता आहिस्ता उतार फ़ैंकते हुए अपने मन की भीतरी पर्तो की ओर कदम कदम बढते जाना.अपने भीतर छिपे उस विराट के एक नन्हे से अंश से आमने सामने होने की यात्रा हो जैसे.
गर्भ ग्रिह जाने पर जो पहला कछ है उसमे पहले तीन ओर से दरवाजे थे .एक ओर का द्वार बंद कर दिया गया है पर एक सामने और एक बायी ओर खुलता द्वार अब है.इन द्वारो की बनावट तोरण के समान है.पुराने समय के लकड़ी के दरवाजो मे जो नक्काशी का काम देखने को मिलता है उतना ही बारीक काम यहां पत्थर पर है.सामने नन्दी का मंडप है ,जिसकी गोल चंदोवे वाली छत की नक्काशी बस देखते ही बनती है.हमने देखा कि यहां नन्दी का चेहरा ठीक शिव जी की ओर सीधे देखते हुए नही था वरन थोड़ा सा दाहिनी ओर को मुड़ी हुई द्र्ष्टी थी.पर हमने देखा कि नन्दी का चेहरा पीतल की पट्टियो और चेनों से ढका है.हमने अनुमान लगाया कि शायद नन्दी भी विध्वंश के शिकार हुये होगे और पुनः स्थापन के दौरन ऐसा हो गया होगा. इस मन्दिर मे हुई तोड़ फ़ोड़ को देख कर बहुत दुख होता है पर साथ ही उन शिल्पियो के प्रति मन श्रद्धा से अभिभुत हो जाता है.कितनी बेजोड़ थी उनकी कला की इतनी तहस नहस के बावजूद अपना सौन्दर्य संजो कर रखे हुए है.

मन्दिर की दीवारो पर रामायन ,महाभारत से सम्बन्धित चित्र उकेरे हुये है.बाणों की शैया पर भीष्म पितामह,महाभारत के युद्ध मे दोनो ओर से होती बाणो की वर्षा,रथ,अस्त्र-शस्त्र,राम भरत मिलाप का दृश्य,हाथी घोड़े उंट गरज यह कि हमारे अनेको पौराणिक संदर्भ छेनी हथौड़ी से लिखे हमारे सामने थे.शब्द कितने बेमानी हो उठते है ऐसे मे.मन्दिर के इस मुख्य हिस्से की बाहरी दीवारो की सरंचना सच अद्भुत.जैसे घड़ी के डायल मे घंटो के नम्बर के बीच मिनिट की छोटी रेखाये होती है कुछ इसी तरह गर्भ ग्रिह की बाहरी दीवारो पर पांच चौड़े खम्बो के बीच कै पतले पतले खम्बे और हर खम्बे पर नृत्य की मुद्रामे अभिसारिकाये .इतनी बारीक तरीके से उकेरी गयी है ये मुर्तिया कि उनका अप्रितिमशारीरिक सौष्ठव जैसे आंखो के सामने साकार होने लगता है .पर सारी मुर्तियां खंडित है.शायद ही किसी मुर्ति का चेहरा,हाथ और पैर साबुत हो लेकिन इसके बाव्जूद उनका आकर्षण अद्वितीय है.उनके आभूषण हमारे सम्रिद्ध अतीत की और न्रित्य की भंगिमाये कला की गवाह है.वैसे न्रित्य की मुद्रा मे नारी मुर्तियो को देख हमे याद आ गया कि हमारी मान्यता के अनुसार पार्वती जी ने भी इस स्थान पर न्रित्य किया था.शंकर के चारो ओर ये किसकी स्मृतिया है.
मन्दिर के मुख्य हिस्से के तीन ओर छाया दार गलियारे है.इन गलियारो और मन्दिर के बीच सकरी सी खुली जगह है जहां से आसमान दिखायी पड़ता है और सूरज की किरणे गर्भ गृह की बाहरी दीवारों पर पड़ती रहती है.क्या खम्भो पर पड़ती रौशनी से कभी दिन के चढने उतरने का अंदाजा लगाया जा सकता रहा होगा.ये गलियारे भीतर की ओर खम्बो पर टिके हैं और ये स्तंभ भी बहुत कलात्मक है.बीच बीच मे बाहरी दीवरो पर बाहर की ओर खुलते गवाच्छ है जिन्से ठंडी हवाये लगातर आती रहती है.
मन्दिर का उपरी हिस्सा सबसे अलग लगा हमे.यह बेसाल्ट पत्थर का नही वरन लाइम्स्टोन का बना हुआ है मन्दिर के भीतर ,गलियारो के बीच की खुली जगह से देखने मे जो हिस्सा दिखायी पड़ता है वह उपर को जाता नुकीला सा मन्दिर के विमान सा ही लगता है किंतु बाहर से इसका आकार बिल्कुल अलग सा लगता है.इस हिस्से मे भी अद्भुत नक्काशी देखने को मिलती है.
हमने यहां काफ़ी समय बिताया .सच पूछिये तो जी फ़िर भी भरा नही था .मन्दिर के बाहर कुछ दूरी पर बने दीप स्तम्भ,कुछ और इधर उधर बिखरी इक्का दुक्का इमारते,किले के ढहते बुर्ज सब किसी सम्रिद्ध अतीत के उजड़ते वर्तमान की गाथा कह रहे थे पर इस सबके बीच अंधियारे के बीच दिये की जगमगाती लौ सा दिपदिपा रहा था भोले बाबा का आवास ,विश्वास का सम्बल हमारे हाथ मे थमाता.

2 comments:

yashasvi said...

Pranam Namita ji,

wow... the way you narrate things is so lucid yet so attractive... the elegance is evident in your words... I would have loved to see your poems inserted in between... many of your poems would be apt in various blogs here...

One of your fans,

yashasvi

namita said...

yash..............u made my day dear boy.
that idea abt inserting poem in between,good one.simply did not occur to me.shall definitely try it in future.
keep coming.........such words certainly energize me

namita