Monday, November 5, 2007
कुछ बातें अक्का से...
अक्का ,तमिल मे बड़ी बहन को कहते हैं । मेरे लिये अक्का यानि मेरी ननद , यानि डा सुमति अय्यर । हिन्दी साहित्य के सुधि पाठकों के लिये आज से चौदह साल पहले यह नाम सुपरिचित नाम था । तमिल से हिन्दी मे अनुवाद के लिये शायद दिमाग मे सबसे पहले आने वाला नाम ।कविता ,कहानी , नाटक हर विधा मे अक्का का दखल था । अख्बार, पत्रिकायें , दूर्दर्शन ,सभायें, गोष्ठियाँ ,सब जगह अपनी उपस्थिति दर्ज करायी । और इतनी जल्दी थी हर जगह पहुंचने कि वहां भी चली गयी जहां कम से कम उस समय तक तो वह खुद भी जाने को तैयार नही थी ।
हां, आज से ठीक चौदह साल पहले ,५ नव्म्बर १९९३ को अक्का चली गयी । मेरा मानना है कि हर व्यक्ति अपने नज्दीकी लोगो मे अपना थोड़ा बहुत हिस्सा जरूर इन्वेस्ट करता है । उसके जाने के बाद बचे हुए लोगो मे वह हिस्सा ताउम्र के लिये यही रह जाता है लेकिन साथ ही वह अपने साथ उन सब लोगो का थोड़ा थोड़ा हिस्सा ले भी जाता है । जिन्दगी रुकती नही है पर कही कुछ खाली रहता है । जिग सा पजेल के खोये हुए टुकड़े की छूटी हुइ जगह की तरह ।
जानती हो ना अक्का ,तुम्हारे जाने को हम सब ने अलग अलग ढ्ग से बर्दाश्त किया लेकिन एक बात कामन थी हमने आपस मे तुम्हारे विषय मे अपने दुख , अपने दर्द की बात शायद ही कभी की हो । सच तो यह है कि हम सब तुम्हारा जाना झेल ही इसीलिये पाये कि तब जो सन्ग्याशून्यता छायी थी ,उसे हमने आज तक कुरेदा नही हैं हम एक साथ बैठ कर कभी नही रोये हैं । शायद हमे डर है कि मिल कर दुख बांटने से हम अपने अपने हिस्से की अक्का को खो देगे ।
तुम्हे तो पता ही होगा कि रोये तो हम उस दिन भी नही थे । रोयी अम्मा भी नही थी । एक बूंद आंसू नही टपका था उनकी आंख से । कैसे टपकता जो ज्वालमुखी उनके अन्दर धधक रहा था वह आंसू क्या रक्त तक सोख ले गया । और हम तो तुम्हारे पास बैठे तुमसे ढेरों शिकायते कर रहे थे । आज भी वे सारी शिकायते जिन्दा है ।
याद है ना तुमहे , कान्पुर मे तुम्हारे लाज्पत नगर वाले घर मे साथ बितायी वह रात ,जब हमने ढेर बाते की थी । े । ननद भाभी के सारे गिले शिकवे ,सारी गलतफह्मिया दूर की थी और हमारी दोस्ती का एक नया अध्याय शुरु हुआ था । हम उस रात लख्नऊ से आ कर इसी लिये तो तुमहारे घर गये थे । पर तब क्या पता था कि ऊपर वाले ने यह नियत कर रखा है कि उस रात के बाद हमारी बाते हो ही नही पाये बस एकालाप ही हो । लेकिन वह रात मेरे अन्दर हमेशा धड़कती रहती है । कितनी बाते की थी हमने । तुम्हारी कहानी के कुछ पात्रो को जब हमने पह्चान लिया था तो तुम कैसे मुस्कायी थी । बोली थी अरे तुम तो उन लोगो से कभी मिली नही हो बस कभी कभार मेरी बातों मे जिक्र सुना है फिर कैसे जाना ?क्या इतना साफ है ? याद है क्या कहा था हमने हम तो तुम्हारी रचनाओ के पुराने पाठक हैं और ऐसे अक्सर हो जाता है कि अगर पाठक अपने लेखक को अच्छी तरह जानने लगे तो उसके दिमाग की उठापटक उसकी समझ मे आने लगती है । और हममे एक शर्त भी लगी थी कि देखे हम तुम्हारे अगले पात्र को पह्चान पाते है कि नही ।पर देखो शर्त हारने काऐसा भी डर क्या कि तुमने कलम ही तोड़ डाली ।
कितनी सारी बाते है जो तुमहे बतानी है । तुमसे कहनी है । तुमने अपने पहले कविता सकंलन की एक कविता मे लिखा है
.......कांच छिटक गया है, टूटॆगा ही.......
..................
यह नही जानती थी
कि बिखरे टुकड़ों में
एक बिम्ब अनेकों मे फैल जायेगा
तुम मेरे समस्त अन्तर्मन मे फैल जाओगे
न भुला पाने की हद तक ।
तुम भी जाने के बाद कितने बिम्बों मे कैद हो । कैक्टस के उन गमलों मे जो कभी तुम्हारे टेरस पर थे और अब मेरे घर मे ,मेरी अल्मारी मे टंगी हैंड्लूम की उन फिरोजी, नीली ,नारंगी चटक रंग की साड़ियों मे जो कभी तुम्हारी सांवली सलोनी काया पर इठलाती थी और जिन्हे हम अक्सर फिर फिर प्रेस कर अल्मारी मे टांग देते है , उन किताबो ंमे जो कभी तुम्हारे रैक मे सजी रहती थी और आज मेरे कमरे मे । जब भी किसी पुस्तक मेले मे किसी स्टाल मे तुम्हारी लिखी या अनूदित पुस्तक दिख जाती है तो हम देर तक वही खड़े रह जाते है ,तुम्हारे वहीं आस पास कहीं होने के एह्सास से भरे .
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4 comments:
Very nice Bhabhi. Though I have not met her or been with her. Truly I miss her so much. I am very unfortunate that i was unable to be with her. But all her books and as you said the things we have with us will be priceless and we shall always get reminded of her.
Poorani
namaste...
Maine har baar kaha ki ... aapki rachna main ek baar mein hi padh gaya...
lekin is baar aisa nahi hua...
is baar... mujhe ruk-ruk ke padhna pada... himmat hi nahi hui... it was really hair raising experience... jitna padhta gaya... aage padhna utna hi mushkil hota gaya... lekin padhne se khud ko rok bhi nahi paaya.
Akka di ko maine bhi jaana hai... is article se pahle... sir ke jariye... unke purse mein rakhi unki tasweer ke jariye... wo andar ki kasmasahat dekhi hai... dekha kaise shaant chehre ke andar koi kaise bilakhta hai... dekha hai jab sab kuchh kiya jaata hai... lekin hota kuchh nahi... sab dekha... aur aaj aapke article mein bhi mahsoos kiya...
नरेश
तुमने तो सब ऐसे कह दिया जैसे आवाज तुम्हारी हो और मन हम लोगो के .
we are lucky to have you.
namita
Very true, Bhabhi. None of us want to discuss this and again get into the phase of frustration - for being so helpless despite having the best of connections. All those childhood stories of good winning over the evil at the end sound so meaningless. We just could not manage to do anything. I still remember, on one of my visits to Chennai sometime after that cruel November night - somewhere in the middle of a playful conversation, Kartik asked me suddenly - "Mama, mummy ka kuchh pata chala?". I was ashamed of myself and could not give a reply to him or to myself.
Well, I have learnt to live with that now - I give a mouthful of my choicest vocabulary in Hindi to the whole world and bring down my BP.
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